tag:blogger.com,1999:blog-8234335352219398549.post453449984558065304..comments2023-10-10T02:40:42.354-07:00Comments on अपना दौर: बापू कहे जाने के योग्य नहीं है आसाराम/बलराम अग्रवालबलराम अग्रवालhttp://www.blogger.com/profile/04819113049257907444noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-8234335352219398549.post-57729428709686017162013-01-23T03:01:23.414-08:002013-01-23T03:01:23.414-08:00रावण अहंकारी तो था लेकिन लंपट नहीं। यदि ऎसा होता त...रावण अहंकारी तो था लेकिन लंपट नहीं। यदि ऎसा होता तो सीता कैसे बच आती?--चंदेल जी, क्या आपको नहीं लगता कि यह कथन रामवादियों का ही है। सीता को बचाए रखने के लिए रामवादियों ने रावण की जो छवि बनायी यह उसका परिणाम है? बहरहाल, कथा को जिस उद्देश्य से उद्धृत किया था यह बहस उसका हिस्सा नहीं है।बलराम अग्रवालhttps://www.blogger.com/profile/04819113049257907444noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8234335352219398549.post-41199460166820185442013-01-20T21:05:12.124-08:002013-01-20T21:05:12.124-08:00ये बाबा लोग बाबागिरी या यों कहे चमत्कारी बनने की आ...ये बाबा लोग बाबागिरी या यों कहे चमत्कारी बनने की आड़ में जनता और जनता के नुमईन्दो की आँख में धुल झोंक कर चल और अचल सम्पति पर कब्जा जमाये हुए है .. सच आसाराम ही नहीं और भी बाबा लोग है जो बाबा क्या सच्चे आदमी कहलाने लायक नहीं है। जनता धर्मान्धता के भांग के कुए में ऐसी डूब चुकी है की बाबाओ को उध्दारक मान चुकी है। क्या ऐसी अंध भक्ति जन और राष्ट्रहित में हो सकती .हम बाबाओ में अंध आस्था रखने वालो को विचार कारन होगा की जिस बाबा की जय जयकार कर रहे है क्या ये बाबा उसका हकदार भी है।।।।।।। डाँ नन्द लाल भारती 19.01.2013बलराम अग्रवालhttps://www.blogger.com/profile/04819113049257907444noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8234335352219398549.post-12490260564477055242013-01-18T22:02:03.998-08:002013-01-18T22:02:03.998-08:00उदहारण सटीक है। आजकल के ये संत भी सत्ता के नशे में...उदहारण सटीक है। आजकल के ये संत भी सत्ता के नशे में डूबे राजनेता हो गए हैं। मुश्किल यह है जनता के वोट भी इन्हें ही मिलते हैं।उमेश महादोषीhttps://www.blogger.com/profile/17022330427080722584noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8234335352219398549.post-68314484608726740102013-01-17T05:31:02.635-08:002013-01-17T05:31:02.635-08:00प्रिय बलराम,
तुमने लिखा कि आसाराम के प्रति अब सम्...प्रिय बलराम,<br /><br />तुमने लिखा कि आसाराम के प्रति अब सम्मान का भाव मन में शेष नहीं रहा. लगता है पहले तुम्हारे मन में उसके सम्मान भाव था. इसका अर्थ यह कि उसकी धूर्तताओं की जानकारी तुम्हे नहीं थी. उस व्यक्ति का संदर्भ रावण के साथ जोड़ना उसे बड़ा बनाना है. रावण के विषय में बाल्मीकि रामायण का जो उद्धरण तुमने दिया है वह प्रक्षिप्त प्रतीत होता है. रामवादियों ने रावण की जो छवि बनायी यह उसका परिणाम है. कश्यप जी से सहमत हूं. इंद्र ने अहिल्या के साथ वही सब किया और दूसरे कितने ही देवताओं/ऋषियों ने यह सब किया---रावण अहंकारी तो था लेकिन लंपट नहीं. यदि ऎसा होता तो सीता कैसे बच आती. यदि वे इस धरती में जन्मे थे तो वे मानव ही थे. रावण के अपने सिद्धान्त थे---जबकि राम ने सिद्धान्तों की बखिया उधेड़ी है. बहुस्त्रीवादी होने के आरोप मनीषियों ने राम पर भी लगाए हैं, लेकिन हम इतना राममय हैं कि राम की त्रुटियां हमें दिखाई नहीं देतीं. सीता के साथ राम ने जो अत्याचार किया उसके विषय में क्या कहेंगे. धोबी आदि के नाम पर उनके अत्याचारों को छुपाया गया है. <br /><br />रूपसिंह चन्देल रूपसिंह चन्देलhttps://www.blogger.com/profile/01812169387124195725noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8234335352219398549.post-14263958331375170302013-01-17T05:06:22.598-08:002013-01-17T05:06:22.598-08:00आ॰ कश्यप जी, मुझे लगता है कि इस लेख में मैंने स्त्...आ॰ कश्यप जी, मुझे लगता है कि इस लेख में मैंने स्त्री-समस्या को छुआ ही नहीं है, केवल काम-प्रेरित हिंसक मानसिकता को इंगित किया है और यह बताने का प्रयास किया है कि यह मानसिकता नैतिक दुहाई को नहीं सुनती। यह कथा वाल्मीकि से ली है अत: इन्द्र और अहल्या के बारे में भी उन्हीं के माध्यम से निवेदन है कि इन्द्र उसमें पर-स्त्रीगमन करता है उसी की सहमति से। इसमें गौतम व अन्य समुदाय की मानसिकता पर जितना आक्षेप किया जा सकता है, अहल्या पर उतना नहीं। लेकिन अहल्या के उद्धार को भी आखिरकार सम्भव बनाया ही गया यह कहकर मैं पुरुषवादी ब्राह्मण ग्रंथों का समर्थन नहीं कर रहा हूँ। काल की गति धीमी होती है, लेकिन वह होती अवश्य है। टिप्पणी के लिए धन्यवाद।बलराम अग्रवालhttps://www.blogger.com/profile/04819113049257907444noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8234335352219398549.post-86242580499628268182013-01-17T04:55:48.660-08:002013-01-17T04:55:48.660-08:00सुन्दर और सामयिक टिप्पणी है।सुन्दर और सामयिक टिप्पणी है।भारतेंदु मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/07653905909235341963noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8234335352219398549.post-86758310232319389552013-01-17T03:11:10.445-08:002013-01-17T03:11:10.445-08:00आदरणीय अग्रवाल जी
सादर वंदन
एक अर्से के बाद एक संव...आदरणीय अग्रवाल जी<br />सादर वंदन<br />एक अर्से के बाद एक संवेदनशील मुद्दे पर आपकी पोस्ट देखकर अच्छा लगा. आपने रावण के संदर्भ से स्त्री उत्पीड़न के मुददे को उठाया है. अच्छा लगा. आसाराम बापू कहलाने लायक नहीं हैं. मैं सिर्फ इतना कहना चाहता हूं कि स्त्री उत्पीड़न का मुद्दा नया नहीं है. आपने रावण का उदाहरण दिया. पता नहीं देवराज इंद्र को आपने क्यों भुला दिया. अहल्या का बलात्कार करने के बाद भी उनके देवराज पद पर आंच तक नहीं आती. मेरा मानना है कि स्त्री सम्मान का मुद्दा केवल पौराणिक संदर्भों की दुहाई देने से संभव नहीं हो सकता. आसाराम, ठाकरे या कोई और नेता या कथावाचक वही कह रहे हैं, जो उन्होंने सामंतवादी संस्कार से भरपूर शास्त्रों में पढ़ा है. वे स्मृतियों से प्रेरणा लेने वाले लोग हैं—अतःपरंप्रवक्ष्यामि स्त्री शूद्रपतनानि च/जपस्तपस्तीर्थयात्रा प्रव्रज्यामन्त्रसाधनम्।। अत्रि स्मृति १३३. स्त्री सम्मान और स्वाधीनता का मुद्दा आधुनिक है, इसलिए वह ऐसे ही समाज में संभव है जो समाज आधुनिक भाव—बोध से संपन्न हो. <br />परंपरा की दुहाई देकर इस समस्या का समाधान शायद ही संभव हो. हां, उस समय तक ऐसी कोशिश तो कर ही सकते हैं.ओमप्रकाश कश्यपhttps://www.blogger.com/profile/15528163513667115228noreply@blogger.com