बुधवार, 18 नवंबर 2009

केरल यात्रा-4















रोमन
से अनुवाद के सम्बन्ध में मेरा एक छोटा-सा उदाहरण यह अनुभव भी प्रस्तुत कर देना विषय से अलग नहीं माना जाना चाहिए
2005 की बात है। कर्नाटक एक्सप्रेस के द्वितीय श्रेणी स्लीपर में बैठा मैं बंगलौर से दिल्ली की यात्रा पर था। मेरी बर्थ के आसपास ही एक नौजवान की भी बर्थ थी। वह बंगलौर स्थित किसी बहुराष्ट्रीय कम्पनी में इटेलियन से हिन्दी या अंग्रेजी भाषा में अथवा हिन्दी या अंग्रेजी से इटेलियन भाषा में अनुवादक के पद पर कार्यरत था। उसने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से इटेलियन में स्नातक की उपाधि ली थी और इटली से स्कॉलरशिप भी उसे मिली थी। उससे मुझे पता चला कि इटेलियन में वर्ण नहीं है और न ही उच्चारण है।
लेकिन हिन्दी के सारे अखबार क्वात्रोच्चि नाम दशकों से छाप रहे हैं? मैंने कहा।
वे सब उसके नाम के अंग्रेजी स्पेलिंग्स को अनुवाद करके छाप रहे हैं। उसने बताया,सही इटेलियन नाम क्वात्रोक्कि है।
वाकई, बाद में जैसे-जैसे हिन्दी पत्रकार इस सत्य से परिचित होते गए, वैसे-वैसे क्वात्रोच्चि को क्वात्रोक्कि लिखा और पढ़ा जाने लगा था। समाचार-माध्यमों में इस तरह के अनगिनत उदाहरण भरे पड़े हैं। यह एकदम अलग बात है कि कुछ लोग यह (कु)तर्क पेश करें कि क्वात्रोक्कि लिखा जाय या क्वात्रोच्चि क्या अन्तर पड़ता है, समाचार का असल उद्देश्य तो घटना(अथवा दुर्घटना) से आम आदमी को परिचित कराना होता है, न कि नामों की शुद्धता या अशुद्धता से परिचित कराना; सो हम करा ही देते हैं।

जिस समय अपनी टैक्सी के साथ अरुण उपस्थित हुआ, सबसे पहले उसने हमसे यही कहा—“सर, आपके पास अगर ऑडियो सीडीज़ हों तो रख लीजिए, मेरी गाड़ी में प्लेयर है।…और अगर वीसीडी हो तो वह भी आप रख सकते हैं…।
ऑडियो-प्लेयर्स का या मिनी-साइज़ टीवी सेट्स का होना तो मैंने दिल्ली की कुछ गाड़ियों में देखा था, लेकिन वीसीडी-प्लेयर भी होता हैयह नहीं मालूम था। वैज्ञानिक प्रगति के इस युग में कुछ भी असंभव नहीं है। नई बातों को सुनकर या नई चीजों को देखकर किसी का भी पहली बार चौंकना अस्वाभाविक नहीं है। हमारी उम्र के लोगों ने अपनी किशोरावस्था में कब यह कल्पना की थी कि एक दिन सारी दुनिया हमारी गोद में टिकी होगी! कम से कम मैंने तो घर की मेज या अलमारी के ऊपर एक अदद रेडियो के रखे होने से अधिक की न कल्पना की थी, न इच्छा। आज मेरे आठ वर्षीय भतीजे की गोद में भी दुनिया(लैपटॉप) है, और अपनी तर्जनी के हल्के-से एक इशारे से वह उसके जिस हिस्से को चाहे अपने सामने आ उपस्थित होने को विवश कर सकता है।

नोट:इस पोस्ट में संलग्न सभी फोटो मेरे कनिष्ठ पुत्र आदित्य अग्रवाल द्वारा खींचे गए हैं। इस बार के तीनों फोटो चाय-बाग़ानों के हैं।



2 टिप्‍पणियां:

सहज साहित्य ने कहा…

आपने महत्त्वपूर्ण कार्य प्रस्तुत किया है ।यह जीवन्त लेखन का श्रेष्ठ नमूना है ।

सुरेश यादव ने कहा…

भाई बलराम अग्रवाल जी,आप की केरल यात्रा बहुत जीवन्त है .अहसास होता है की (छोटी मात्रानहीं चढ़ा पाया)एक विद्वान लेखक केरल यात्रा पर निकला है.सार्थक जानकारी के लिए बधाई. 09818032913