शुक्रवार, 1 अक्तूबर 2010

फिल्‍म उद्योग में हिंदू-मुस्लिमों के बीच भाईचारा कायम है/अडूर गोपालकृष्‍णन



[यमुनानगर (हरियाणा) से अविनाश वाचस्पति द्वारा प्रेषित विशेष रपट]
दादा साहेब फाल्के अवार्ड से अलंकृत विश्‍वविख्यात  फिल्मकार अडूर गोपालकृष्णन ने 30 सितम्‍बर की  सांय  डी ए वी गर्ल्‍स  कालेज,  यमुनानगर(हरियाणा) में आयोजित तीसरे हरियाणा अंतर्राष्ट्रीय फिल्‍म समारोह  की पूर्व-संध्या पर विशेष प्रेस  कांफ्रेंस को संबोधित करते हुए कहा कि  उनके द्वारा निर्देशित फिल्मेंशैडो किल आदि  सत्य-घटना पर आधारित हैं। इस फिल्म में एक जल्लाद की मन:स्थिति को दर्शाया गया  है। जिसमें उन्‍होंने एक जल्लाद के इंटरव्यू से प्रेरित होकर फिल्‍म का निर्माण  किया। 

अपनी फिल्मों के लिए आठ बार राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित फिल्‍मकार अडूर का मानना है कि हिंदू-मुसलमानों के बीच जितना सौहार्द भारतीय फिल्म इंडस्ट्री के अंदर है, उतना किसी अन्य क्षेत्र में नहीं है। मुसलमान  होने के बावजूद सुप्रसिद्ध अभिनेता (यूसुफ खान) ने अपना हिन्दू नाम दिलीप कुमार रखा,  इससे उन्हें ख्याति भी खूब मिली और दोनों ही वर्गों द्वारा उन्हें स्वीकार भी किया गया। एक अन्य प्रश्न के उत्तर में अडूर ने कहा कि वे केरल की जिंदगी को मुंबइया फिल्मों की तुलना में बेहतर तरीके से जानते हैं।  मुंबईया फिल्में भारत की जिंदगी की  असलियत नहीं दिखलातीं। फिल्मों में सिर्फ भाषा ही नहीं, अपितु ऐसी बहुत-सी चीजें होती हैं, जिन्हें समझने की जरुरत है। उन्होंने बतलाया कि कोई फिल्म निर्माता  स्थानीय होने के बाद ही यूनिवर्सल बनने की ओर कदम बढ़ाता है, जिसके जीवंत  उदाहरण सत्यजीत राय व श्याम बेनेगल हैं।
बायें से:सर्वश्री अडूर गोपालकृष्णन,  के बिक्रमसिंह तथा अजित राय
कान, वेनिस व बर्लिन फिल्म समारोह में मिलने पुरस्कारों को  ऑस्कर अवार्ड से कहीं बड़ा बतलाते हुए उन्‍होंने कहा कि ऑस्‍कर  सिर्फ अमेरिकन फिल्म इंडस्ट्री की देन है। अडूर ने छोटे फिल्‍म समारोहों की उपयोगिता को सार्थक बतलाते हुए जोड़ा कि बड़े व छोटे फिल्मोत्सव दोनों ही समान रुप से महत्वपूर्ण होते हैं। छोटे फिल्मोत्सव में फिल्मों के शिल्प व शैली की ओर सदैव अधिक ध्यान दिया जाता है और बड़े उत्सवों में ग्लैमर और चकाचौंध पर फोकस किया जाता है। फिल्मकार को हमेशा  जिन्दगी की असलियत ही दिखानी चाहिए और किसी को भी इसमें शर्म महसूस नहीं करनी चाहिए। लोगों की यह धारणा गलत है कि कला-फिल्में पैसा नहीं कमातीं। इसके प्रमाणस्वरूप उन्होंने सत्यजीत राय की उन फिल्मों के नाम गिनाए, जिन्होंने लागत से अधिक पैसा कमाने का रिकार्ड कायम किया है। प्रेस कांफ्रेंस के दौरान अडूर गोपालकृष्णन ने यह भी बताया कि उन्होंने जितनी भी फीचर फिल्में बनाई हैं, उनकी फिल्म ट्रांसक्राइब करके स्क्रिप्ट तैयार की जा रही है और शीघ्र ही  अंग्रेजी पुस्तक के रूप में प्रकाशित की जा रही है।
प्रेस कान्फ्रेंस में बोलते हुए के बिक्रमसिंह
प्रेस कांफ्रेंस के दौरान फिल्मकार के. बिक्रम सिंह ने  कहा कि आजादी के 60 साल बीत जाने के बाद भी देश में 40 प्रतिशत लोग ऐसे हैं, जिन्हें दो वक्त की रोटी नहीं मिल पाती जबकि हम कॉमनवेल्थ गेम्स पर 70 हजार करोड़  रुपए से अधिक की राशि खर्च करने के लिए तैयार हैं।

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