गुरुवार, 25 नवंबर 2010

बंगलौर:इस बार/बलराम अग्रवाल


लाल बाग, बंगलौर में एक मनोहारी दृश्य                 चित्र:बलराम अग्रवाल
डायरी/25-11-2010
दिन अभी शुरू नहीं हुआ। रात के 12/45 हुए हैं। कुछ देर दिन में सो लेने की वजह से नींद जल्दी नहीं आ सकती। मैं और आदित्य जाग रहे हैं। वह एनीमेशन का अपना काम कर रहा है, लेखन-संबंधी मैं अपना।
आज गुरुवार है। रविवार को लाल बाग की सैर की मैंनेराजेश के साथ। साथ घूमने की तो बात ही अलग है, यह बात लिखते हुए भी मुझे प्रेम और अपनेपन की जिस दिव्य गंध का आभास हो रहा है, उसे मैं सिर्फ महसूस कर सकता हूँ, लिख नहीं सकता। लाल बाग की सैर का प्रस्ताव राजेश ने ही मेरे सामने रखा, मैंने उनके सामने नहीं। इस बारे में दो बातें हैंपहली यह कि मुझे यहाँ, बंगलौर के भ्रमण-योग्य इलाकों के बारे में यानी ऐसे इलाकों के बारे में जो निवास से बहुत ज्यादा दूर न हों और प्राकृतिक सुषमा से भरपूर हों, कुछ भी नहीं मालूम; दूसरी यह कि मैं किसी को साथ लेकर घूमने की योजना बनाने के बारे में शुरू से ही दोयम हूँ। गरज यह कि पता भी नहीं है और दब्बूपन भी है। मालूम नहीं क्या बात है कि जब भी राजेश का विचार जेहन में आता है, मन में यह गीत अनायास ही सुनाई-सा देने लगता है:
दोनों जवानी की मस्ती में चूर/
तेरा कुसूर न मेरा कुसूर/
ना तूने सिग्नल देखा/
न मैंने सिग्नल देखा/
एक्सीडेंट हो गया रब्बा-रब्बा…।
नितान्त भोगवादी चरित्र का यह गीत क्यों सुनाई देता है? जबकि जितना मैंने उन्हें समझा है, राजेश को सांसारिक भोग से कोई लगाव नहीं है। अभी तक का अपना जीवन उन्होंने श्रम और विश्वास के साथ बिताया है। अपने जीवन के सुनहरे सतरह वर्ष उन्होंने 'चकमक' के संपादन को सौंपकर एक तरह से भारत की बाल-मेधा को दिशा देने में बिताए हैं। मुझे लगता है कि मैंने भी मात्र स्वार्थ-लाभ हेतु कभी वाहियात चरित्रों या मात्र सिक्कों के पीछे भागने की कोशिश नहीं की। लगभग उन्हीं की तरह का  या सामान्य से भी नीचे का जीवन जिया है। हाँ, साहित्यिक-श्रम अवश्य उनसे कम किया है। पारिवारिक जिम्मेदारियों ने मुझे कभी आज़ाद नहीं रहने दिया। उनके-अपने बीच मैं लेकिन साहित्यिक-लगाव अवश्य महसूस करने लगा हूँ। यह लगाव इकतरफा भी हो सकता है और दोतरफा भी। प्रेम और लगाव हो तो कोई कहाँ-से-कहाँ मिलने को जा सकता है। राजेश का वर्तमान-निवास दक्षिण-बंगलौर के अत्याधुनिक सोसाइटियों से भरपूर सरजापुर रोड स्थित विप्रो से दो-ढाई किमी अन्दर गाँव में है और मैं सीवी रमन नगर के निकट कगदासपुरा में हूँ यानी करीब-करीब पूर्वी-बंगलौर की एक विकासशील कालोनी में। दोनों के बीच कोई सीधी बस सेवा उपलब्ध नहीं है। कम-से-कम तीन बसें बदलकर पहुँचना होता है, दो-ढाई किलोमीटर पैदल चलना अलग। गत 30 अक्टूबर, 2010 को उनसे मिलने के लिए आदित्य की बाइक पर बैठकर पहली बार जब मैं उधर पहुँचा था तो आदित्य ने कहापापा, हम पिछले वर्ष जहाँ आए थे, वहीं पर पहुँच गये हैं।
पिछले वर्ष, यानी अक्टूबर-नवम्बर, 2009 में भी हम इधर आये थे। भाई श्री रामेश्वर काम्बोज हिमांशु ने तब सुश्री सुधा भार्गव का फोन नम्बर मुझे लिखवाया था। इस बार भी उन्होंने ही फोन लिखवाया था और उस समय हम उन्हीं से मिलने को जा रहे थेश्रीयुत राजेश उत्साही जी से। ऊपर की पंक्तियों में केवल कुछ रहस्य बुनने की नीयत से मैंने उन्हें राजेश सम्बोधित किया है। वस्तुत: तो पहले दिन से ही मैं उन्हें उत्साही जी सम्बोधित करता हूँ। इस कथा में रहस्य बुनने की नीयत से उन्हें राजेश सम्बोधित करने की अपनी अशिष्टता के लिए मैं क्षमा याचना करता हूँ।

7 टिप्‍पणियां:

सुभाष नीरव ने कहा…

भाई, कौतुहल बना हुआ है, अगली पोस्ट जल्द दो…

बलराम अग्रवाल ने कहा…

Bhagirath Parihar
to me

show details 6:43 PM (15 minutes ago)

डायरी अच्छी लिख लेते हो और यात्रा वृतांत भी। जारी रखे।
भगीरथ

राजेश उत्‍साही ने कहा…

आगे आप क्‍या लिखेंगे ये तो आप जानें। पर मैं इतना जरूर कहूंगा कि मेरे पीछे जी का पुछ्छला मत न लगाएं। राजेश उत्‍साही कहें या राजेश ही बेहतर है। आप मुझे से बड़े हैं इसलिए इसमें अशिष्‍टता की तो कोई बात ही नहीं है।

बलराम अग्रवाल ने कहा…

Roop Singh Chandel
to me

show details 7:58 PM (34 minutes ago)

आगे की दास्तान का इंतजार रहेगा. क्या कारण है कि भाई चित्र कभी भी नहीं खुलते. मजा किरकिरा हो जाता है. इन संस्मरणॊं को यदि किसी ब्लॉग के हवाले करो तो सबकुछ दिखाई देगा. कहीं चित्रों को छुपाने की शरारत तो नहीं?

चन्देल

बलराम अग्रवाल ने कहा…

shyam sunder aggarwal
to me

show details 11:09 AM (11 minutes ago)

लालबाग वास्तव में ही देखने योग्य जगह है। राजेश उत्साही जी से कभी नहीं मिला, इसी वर्ष अप्रैल माह में 9-10 दिन बैंगलौर में रहा तब भी उनसे मिलने का ख्याल नहीं आया। हालांकि मैं सरजापुर रोड पर स्थित स्प्रिंगफील्ड अपार्टमेंट में रह रहीं श्रीमती सुधा भार्गव से मिलने गया था। उत्साही जी से संक्षिप्त सा परिचय था, फोन पर भी कभी बात नहीं हुई थी। उनके ब्लॉग ‘गुल्लक’ के जरिये ही उनके बारे में कुछ जानकारी थी। या फिर भाई हिमांशु जी ने थोड़ा-बहुत बताया था। WIPRO से जुड़ी साइट ‘Teachers of India’ के लिए पंजाबी अनुवाद का कुछ कार्य किया था। इसके लिए ही उत्साही जी से सम्पर्क रहा। पहली बार के बाद इस साइट के लिए काम कर रही टीम का कार्य मुझे प्रभावित नहीं कर पाया। शायद यही कारण रहा हो कि उत्साही जी से मिलने की बात दिमाग में नहीं आई। किसी भी व्यक्ति से मिलने के बाद ही उसे ठीक से समझा जा सकता है। राजेश उत्साही जी से फिर मुलाकात हो तो मेरा नमस्कार कहना।
-श्याम सुन्दर अग्रवाल

Sanjay Grover ने कहा…

अच्छा लगा डायरी का यह पन्ना।
‘नितांत भोगवादी चरित्र का यह गीत क्यों सुनाई पड़ता है....’ पर अंदाज़े लगाते हुए विश्लेषण करनें बैठें तो मामला उलझ जाएगा। शायद आप ही अगली बार इसपर कुछ कहें।

बलराम अग्रवाल ने कहा…

Suresh Yadav
to me

show details 10:12 PM (1 hour ago)

बहुत अच्छा बलराम अग्रवाल भाई ,बंगलौर का आनंद ले रहे हैं .शुरुआत सुन्दर है ,रहस्य भी सरल है .यात्रा की लम्बाई बढाइये .बधाई