शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2010

दूध वाले भैया


दिल्ली में दूध-आपूर्ति इसकी सीमा से सटे उत्तर प्रदेश और हरियाणा के ग्रामीण अंचलों द्वारा की जाती है। कुछ आपूर्ति रेलगाड़ियों द्वारा, कुछ दुग्ध-वाहनों द्वारा, कुछ पैडल-साइकिलों द्वारा, कुछ स्कूटरों और मोटर-साइकिलों आदि के द्वारा भी संपन्न होती है। यह बेहद श्रमसाध्य कार्य है जिसमें लगे लोगों की रातें जागते हुए गुजरती हैं क्योंकि दिल्ली के नौनिहालों को सुबह-सबेरे दूध उपलब्ध कराया जा सके। दूधिया या दूध वाले भैया कहलाने वाले इन लोग की दिनचर्या और जीवनचर्या दोनों पर बहुत सकारात्मक कलम चलाई जानी चाहिए। इनकी पैडल-साइकिलों में हैंड-ब्रेक नहीं होते। जरूरत पड़ने पर उसे ये अपने पैरों के करतब से रोकते हैं। बेशक, इनमें से अनेक दुग्ध-डेयरियों की बजाय दुग्ध-फैक्ट्रियों से माल उठाने और सप्लाई करने वाले हो सकते हैं, लेकिन सब नहीं। इनके चलते ट्रेनों और ट्रकों को कितने-कितने जिरह-बख्तर अपने बदन पर लादने पड़ते हैंउन्हें दर्शाने हेतु प्रस्तुत है यह फोटो:


शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2010

प्रगति मैदान, नई दिल्ली की यात्रा


दोस्तो,

नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला,2010 दिनांक 30 जनवरी, 2010 से जारी है और 7 फरवरी, 2010 तक चलेगा। अनेक बोलियों, भाषाओं और लिपियों के जानकार इस मेले में आ-जा चुके होंगे और आगे भी आयेंगे। प्रगति मैदान के एक हॉल के बाहर जब से यह बोर्ड लटकाया गया है तब से अब तक हिन्दी-साहित्य के अमिताभ बच्चन कहे जाने वाले…से लेकर विदूषक कहे जाने वाले…नहीं, यहाँ मैं किसी का नामोल्लेख नहीं करूँगा, बस यह कहूँगा कि हर वर्ष हिन्दी-पखवाड़ा और हिन्दी-सप्ताह मनाने के नाम पर लाखों रुपए लुटा डालने वालों से लेकर लूट ले जाने वालों तक, हर स्तर का विद्वान यहाँ से अवश्य ही गुजरा होगा। मैं आपसे सिर्फ यह जानना चाहता हूँ फोटो में दर्शाया गया यह शब्द किस भाषा का है? इसी क्रम में कुछ-और फोटो भी मैं आगे प्रकाशित करने की अनुमति आपसे चाहूँगा।

--बलराम अग्रवाल