रविवार, 19 फ़रवरी 2012

भौंचक है सिर /बलराम अग्रवाल


                                                                                                       चित्र : बलराम अग्रवाल
भौंचक है
सिर
कि रोने के लिए
टिकना चाहता है
जिस पर भी
उसी कंधे से
आने लगती हैं
आवाजें
सिसकने की।









4 टिप्‍पणियां:

सुभाष नीरव ने कहा…

भाई बलराम, मैंने इस कविता पर फेसबुक पर भी लिखा है। बहुत अच्छी कविता पंक्तियां हैं। कविता में इसी प्रकार यदा-कदा फेरी लगाते रहा करो…

रूपसिंह चन्देल ने कहा…

बलराम, इस छोटी-सी कविता के भावों की गहनता से मन मुग्ध हो उठा. बहुत सुन्दर. तुम्हारे अंदर बैठा एक उत्कृष्ट कवि अब तक कहां छुपा था?

चन्देल

सुधाकल्प ने कहा…

दिल को छूता हुआ एक सत्य । चित्रांकन के अनुरूप संवेदनाएं ---अनूठा संगम !

भगीरथ ने कहा…

तुम्हारे अंदर बैठा एक उत्कृष्ट कवि अब तक कहां छुपा था?