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इण्डिया गेट 17अगस्त, 2011 चित्र: बलराम अग्रवाल |
दोस्तो, इसके साथ ही मैं मशहूर शायर फैज़ अहमद फैज़ की एक उद्वेलनकारी यथार्थवादी नज्म आपके समक्ष पेश कर रहा हूँ:-
हम देखेंगे, लाज़िम1 है कि हम भी देखेंगे। वो दिन कि जिसका वादा है, हम देखेंगे॥ जो नौहे-अज़ल2 में लिक्खा है हम देखेंगे। लाज़िम है कि हम भी देखेंगे, हम देखेंगे॥
जब ज़ुल्मो-सितम के कोहे-गिरां3 रूई की तरह उड़ जायेंगे। हम महकूमों4 के पाँव तले ये धरती धड़-धड़ धड़केगी॥ और अहले-हकम5 के सर ऊपर जब बिजली कड़-कड़ कड़केगी॥ हम देखेंगे…
जब अर्ज़े-खुदा के क़ाबे से सब बुत उठवाये जायेंगे। हम अहले-सफा6 मरदूदे-हरम7 मसनद पे बिठाये जायेंगे॥ सब ताज उछाले जायेंगे सब तख्त गिराये जायेंगे॥ हम देखेंगे…
बस नाम रहेगा अल्ला का जो गायब भी है हाजिर भी। बस नाम रहेगा अल्ला का जो मंजर भी है नाज़िर भी॥ उट्ठेगा अनल-हक़8 का नारा जो मैं भी हूँ और तुम भी हो। और राज करेगी खल्के-खुदा9 जो मैं भी हूँ और तुम भी हो॥ हम देखेंगे, लाज़िम है कि हम भी देखेंगे। वो दिन कि जिसका वादा है, हम देखेंगे॥ 1॰ नि:शंक आवश्यक 2॰ आदि-पुस्तक 3॰ भारी-भरकम पहाड़ 4॰ जनता, गुलाम 5॰ सत्ताधारी 6॰ साफ दिल वाले 7॰ दरबार से निष्कासित 8॰ अहं ब्रह्मास्मि 9 ईश्वरीय शक्ति
हम देखेंगे, लाज़िम है कि हम भी देखेंगे।
वो दिन कि जिसका वादा है, हम देखेंगे॥
1 टिप्पणी:
बहुत अच्छा लगा इस नज्म को सुनना। प्रभाव द्विगुणित हो जाता है।
सादर
इला
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