लड़कियों को ऐसे ही नहीं कह दिया जाता—गाय। नाथद्वारा(जिला राजसमंद, राजस्थान) में अहल्या कुण्ड के एकदम ऊपर बने इस खुले चबूतरे पर खड़ी इस गाय-जैसा निरीह जीवन जीती हैं वे। जहाँ भी खड़ा कर दिया जाय, खड़ी रहती हैं—कड़ी धूप में…कड़ी ठंड में…बारिश में। रूखा-सूखा जो भी आगे डाल दिया जाय, चर लेने को विवश हैं। न डाला जाय तो खड़ी-बैठी ऊँघती रहती हैं, जुगाली करती-सी। कहने को कोई रस्सी नहीं है उनके गले में और न ही पैरों को जकड़े है कोई जंजीर। स्वतन्त्र हैं। लेकिन, गहरा कुण्ड है उनके तीन तरफ—वे जानती हैं और यह भी कि चौथी दिशा को अनखुदा रखा गया है उन्हें दुहने हेतु आते-जाते रहने भर के लिए। जब जी चाहे वे स्वयं और जब जी चाहे मालिक लोग समाप्त कर सकते हैं उनकी इहलीला। दुर्घटनाएँ हमेशा होती ही नहीं, की भी जाती हैं दुनियाभर में। सिर्फ भारत है, जहाँ हर स्तर पर संरक्षण के हजारों-हजार दावों के बावजूद भी बदहाल हैं गायें… बदहाल हैं लड़कियाँ।