रविवार, 4 अप्रैल 2010

भारत में लड़कियाँ


लड़कियों को ऐसे ही नहीं कह दिया जातागाय। नाथद्वारा(जिला राजसमंद, राजस्थान) में अहल्या कुण्ड के एकदम ऊपर बने इस खुले चबूतरे पर खड़ी इस गाय-जैसा निरीह जीवन जीती हैं वे। जहाँ भी खड़ा कर दिया जाय, खड़ी रहती हैंकड़ी धूप में…कड़ी ठंड में…बारिश में। रूखा-सूखा जो भी आगे डाल दिया जाय, चर लेने को विवश हैं। न डाला जाय तो खड़ी-बैठी ऊँघती रहती हैं, जुगाली करती-सी। कहने को कोई रस्सी नहीं है उनके गले में और न ही पैरों को जकड़े है कोई जंजीर। स्वतन्त्र हैं। लेकिन, गहरा कुण्ड है उनके तीन तरफवे जानती हैं और यह भी कि चौथी दिशा को अनखुदा रखा गया है उन्हें दुहने हेतु आते-जाते रहने भर के लिए। जब जी चाहे वे स्वयं और जब जी चाहे मालिक लोग समाप्त कर सकते हैं उनकी इहलीला। दुर्घटनाएँ हमेशा होती ही नहीं, की भी जाती हैं दुनियाभर में। सिर्फ भारत है, जहाँ हर स्तर पर संरक्षण के हजारों-हजार दावों के बावजूद भी बदहाल हैं गायें… बदहाल हैं लड़कियाँ।

3 टिप्‍पणियां:

प्रदीप कांत ने कहा…

क्या लिखा जाए?


आम भारतीय मानसिकता पर कडा प्रहार है।

kshama ने कहा…

Ek aurat hone ke nate yah sachhayi achhee tarah samajh sakti hun...lekin aapki lakhan shailee kee daad deti hun...bahut khoob!

Devi Nangrani ने कहा…

Yeh ek Majboori hai. Dekha jaai to mardoon ko bhi aisi kitni hi dasha aur dudashaon se guzarna padta hai, pichde hue vargon mein..aapne liye apne parivaar ke liye par aurat ko jiyada highlight kiya jaata hai. vaisi aaj ki aurat apne adhikaron se wakif bhi hai..par debate is not the solution.