लाल बाग, बंगलौर में एक मनोहारी दृश्य चित्र:बलराम अग्रवाल |
गुरुवार, 25 नवंबर 2010
बंगलौर:इस बार/बलराम अग्रवाल
शनिवार, 9 अक्टूबर 2010
संयम के निहित-अर्थ/बलराम अग्रवाल
मन्दिर-निर्माण के लिए तराशे गये पत्थर |
अयोध्या में राम जन्मभूमि मन्दिर हेतु नक्काशी की हुई शिलाओं पर पहरा देता जवान |
शुक्रवार, 1 अक्टूबर 2010
स्वतंत्र सिनेमा के रास्ते के संकट कटने चाहिए/संजय झा
संजय झा ने कहा कि वे लोग भाग्यशाली होते हैं,जिन्हें आसानी से प्रोड्यूसर व फंड मिल जाता है। स्वतंत्र सिनेमा को बढ़ावा मिलने से फिल्म निर्माण के क्षेत्र में ऐसे लोगों का पदार्पण होगा, जो फिल्म बनाने के इच्छुक हैं। हालांकि आज डिजिटल मीडिया का युग है, जिसमें नित नए प्रयोग किए जा रहे हैं। अब मोबाइल पर भी फिल्में देखी और बनाई जा सकती है। एक अन्य सवाल के जवाब में झा ने कहा कि बिहार के भागलपुर जिले के सुल्तानगंज जैसे छोटे शहर से होने के बावजूद भी उन्होंने लक्ष्य को नहीं भुलाया है। छोटे शहरों से भी अच्छे फिल्मकार सामने आ रहे हैं जिनके मन में इस विधा के प्रति सच्ची चाहत है अपनी फिल्म के बारे में बतलाते हुए उन्होंने कहा कि मेरी फिल्म एक यात्रा वृतांत है। जिसमें कुंभ मेले के माध्यम से आस्था का पर्व दिखाया है। इस फिल्म की कहानी वारेन हास्टिंग नाम के एक ब्रिटिश युवक की है, जो नासिक मेले में एक पुजारी के घर ठहरता है और पुजारी की बेटी कृष्णा से पे्रम कर बैठता है। फिल्म की कहानी इसी विषय पर केंद्रित हो आगे बढ़ती है। उन्होंने बताया कि 2003 में 20 लाख लोगों के बीच जाकर एक महीने में इस फिल्म को फिल्माया गया है। । फिल्म बनाते समय उन्होंने व्यावसायिकता से समझौता नहीं कि और ज्वलंत मुद्दे पर फिल्म बनाई है। यह फिल्म कवि बाबा नागार्जुन को समर्पित है। फिल्म कमर्शियल सिनेमा को छूती है। फिल्म का संगीत आसाम के जुबीन गर्ग का है। इस फिल्म के निर्माता मैथ्यू वर्गीस ने कहा कि रजनल क्षेत्र में बनी फिल्में भी विश्व में ख्याति अर्जित कर रही है। उन्होंने कहा कि कहानी व भाषा में ताकत होनी चाहिए,फिल्म हिट होना लाज़मी है।
यमुनानगर में अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह का आयोजन अमूल्य उपलब्धि/अडूर गोपालकृष्णन
समारोह के अवसर पर दीप प्रज्वलित करते हुए यह उद्गार प्रकट किए। उन्होंने कहा कि गंभीर सिनेमा लोगों की समझ को परिपक्व करता है। इस भव्य कार्यक्रम की अध्यक्षता कालेज प्रिंसिपल डा. सुषमा आर्य ने की। फिल्मकार के. बिक्रम सिंह विशिष्ठ अतिथि के तौर पर उपस्थित रहे।
दुनिया भर में अनेक मीडिया स्कूल फिल्म से जुड़ी हुई विधाओं की ट्रेनिंग दे रहे हैं, जहां से निर्देशक, कैमरामैन और अन्य तकनीकी के जानकार सामने आ रहे हैं।
उन्होंने कहा कि जिसे संस्कृति की समझ होती है। वही अच्छी फिल्म बनाता है। इस समय क्षेत्रीय भाषा में बनी फिल्में देश विदेशों में खूब लोकप्रिय हो रही है।
हमारे लिए गर्व का विषय है कि तीसरे हरियाणा फिल्म समारोह में देश के दो बड़े विश्व प्रसिद्ध फिल्मकार अडूर गोपालकृष्णन व श्याम बेनेगल अपनी फिल्मों के साथ शामिल हुए हैं। फिल्म समारोह को ठोस आकार देने के लिए कोशिशें जारी रहेंगी।
जिसमें श्याम बेनेगल जी का दर्शकों के साथ सीधा संवाद करवाया जाएगा। इसके अतिरिक्त फिल्म अभिनेता ओमपुरी भी लोगों से रू-ब-रू होंगे। फिल्मोत्सव में श्याम बेनेगल की दो और मूल रुप से हरियाणा के कलाकार यशपाल शर्मा की चार फिल्में इस महोत्सव में प्रदर्शित की जाएंगी।
फेस्टिवल से सभी को यादगार अनुभव मिलेंगे।
को दिखाया जा रहा है, जिसमें आम आदमी के जन जीवन को उकेरा गया है। कालेज प्रिंसिपल ने अडूर गोपालकृष्णन व के. बिक्रम सिंह जी को पुष्प गुच्छ व प्रतीक चिंह देकर सम्मानित किया। अडूर गोपालकृष्णन की फिल्म शैडो किल से समारोह में फिल्मों के प्रदर्शन की शुरूआत हुई।
फिल्म उद्योग में हिंदू-मुस्लिमों के बीच भाईचारा कायम है/अडूर गोपालकृष्णन
बायें से:सर्वश्री अडूर गोपालकृष्णन, के बिक्रमसिंह तथा अजित राय |
प्रेस कान्फ्रेंस में बोलते हुए के बिक्रमसिंह |
मंगलवार, 28 सितंबर 2010
द्वारका(गुजरात) से लौटकर
भेंट द्वारका में एक संकेतपट के निकट बैठा एक स्थानीय बुजुर्ग |
मस्जिद-ए-रौशन, जामनगर |
भेंट द्वारका जाते हुए हिन्दू श्रद्धालुओं के साथ नाव पर सवार स्थानीय यात्री |
बुधवार, 1 सितंबर 2010
पत्थर की पुकार*
रविवार, 11 जुलाई 2010
अवशेष एक बुजुर्ग पीपल और हिन्दी-वर्तनी के
सेलुलर जेल, पोर्ट ब्लेयर के प्रांगण में प्रत्येक कार्यदिवस की शाम को हिन्दी व अंग्रेजी भाषा में ‘ध्वनि एवं प्रकाश’ कार्यक्रम प्रस्तुत किया जाता है। गुणवत्ता और प्रस्तुतिकरण के स्तर पर इसे नि:संदेह स्तरीय कहा जा सकता है। कुछेक कमियों के बावजूद, देश के प्रति भावुक हृदय रखने वालों में यह रोमांच का संचार करने में पूर्णत: सक्षम है। इसमें राष्ट्रीय स्वाधीनता-संग्राम से जुड़ी कई ऐसी बातों का उल्लेख होता है जिनका आम-नागरिक को नहीं पता। ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर इसके प्रांगण में पीपल के एक पेड़ का होना भी बताया जाता है। पीपल का वह पेड़ ‘काला पानी’ की सजा प्राप्त ‘कैदियों’ पर जेल के दुष्ट अधिकारी जनरल बारी के प्रत्येक अत्याचार का चश्मदीद गवाह रहा। 1876 के आसपास निर्मित सेलुलर जेल के उन पीपल-बाबा की आयु इस समय कम-से-कम 150 वर्ष होनी चाहिए थी, क्योंकि 15 वर्ष आयु तो उनकी उस समय भी रही ही होगी। हो सकता है कि उक्त प्रांगण में आयु की दृष्टि से उनसे छोटे-बड़े एक नहीं अनेक पीपल-वृक्ष और-भी रहे हों; और इसमें तो दो राय हो ही नहीं सकतीं कि अन्य-भी अनेक प्रजातियों के वृक्ष उस काल में वहाँ रहे होंगे जो तत्कालीन ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा समय-समय पर निर्मित जेल के सौंदर्यीकरण की योजनाओं की भेंट चढ़ते रहे होंगे। खैर, इन दिनों जो पीपल-वृक्ष सेलुलर-प्रांगण में खड़ा है, उसकी आयु 15-20 से अधिक नहीं लगती। ऐसा प्रतीत होता है कि ‘कैदियों’ पर ब्रिटिश-दानवों के अत्याचारों का एक चश्मदीद गवाह वहाँ खड़ा रखने के व्यापारिक-उद्देश्य से काफी बाद में उसे संरक्षित किया गया है। बहरहाल, अंडमान-निकोबार द्वीपसमूह के पोर्ट ब्लेयर स्थित (संभवत:) पुरातत्व संग्रहालय में मूल पीपल-वृक्ष के तने का एक भाग रखा देखकर एकदम ऐसा लगा जैसे अपने किसी पूर्वज की लोहे-सी मजबूत हड्डी का दर्शन हुआ हो। मन श्रद्धा और क्षोभ दोनों से लबरेज हो गया। क्षोभ से क्यों? कई कारण रहे जिनमें एक कारण उसके बारे में सूचना प्रदान करने वाली पट्टिका में लिखित हिन्दी के शब्दों में वर्तनी की अनगिनत अशुद्धियाँ भी हैं। उसे देखकर यह समझते हुए भी कि इसका देवनागरी में लिखा जाना भी एक उपलब्धि कहा जाना चाहिए, पता नहीं क्यों मुझे उक्त पीपल-वृक्ष के साथ-साथ हिन्दी का भी कटा-शरीर वहाँ रखा प्रतीत हुआ। सितम्बर माह में शुरू होने वाले ‘हिन्दी सप्ताह’ और ‘हिन्दी पखवाड़ा’ आयोजनों में किस-किस स्रोत से पैसा खींचना है अथवा पैसा बहाकर किन महानुभावों को कृतार्थ करना है, यह सब या तो निश्चित हो चुका होगा या निश्चित होने की प्रक्रिया में होगा। बहरहाल, आपके अवलोकनार्थ प्रस्तुत हैं स्वाधीनता-सैनिकों पर ब्रिटिश अत्याचारों के मूक-गवाहों के कुछ फोटो:
शुक्रवार, 9 जुलाई 2010
फाँसीघर—सेलुलर जेल, पोर्टब्लेयर
‘अपना दौर’ के इस अंक में प्रस्तुत है, अंडमान-निकोबार द्वीपसमूह के पोर्टब्लेयर स्थित सेलुलर जेल का ऐतिहासिक फाँसीघर।
सेलुलर जेल, पोर्ट ब्लेयर के प्रांगण में स्थित इस फाँसीघर का फर्श लकड़ी के तख्तों से दरवाजानुमा बना है जो बायीं ओर दिखने वाले लोहे के लीवर को खींचने पर नीचे को खुल जाता था। इस पर बनी सफेद रंग़ की गोल आकृति पर खड़ा करके, ऊपरी बीम में बँधे फंदों को मृत्युदण्ड प्राप्त देशभक्तों की गरदन में फँसाया जाता था। तत्पश्चात लीवर को खींच दिया जाता था और देशभक्त का शरीर नीचे झूल जाता था।
कितने देशभक्तों ने इन्हें चूमा, उनका सही-सही आँकड़ा हमेशा ही संदिग्ध रहेगा। उन सभी महान आत्माओं को असीम श्रद्धा के साथ नमन।
रविवार, 4 अप्रैल 2010
भारत में लड़कियाँ
लड़कियों को ऐसे ही नहीं कह दिया जाता—गाय। नाथद्वारा(जिला राजसमंद, राजस्थान) में अहल्या कुण्ड के एकदम ऊपर बने इस खुले चबूतरे पर खड़ी इस गाय-जैसा निरीह जीवन जीती हैं वे। जहाँ भी खड़ा कर दिया जाय, खड़ी रहती हैं—कड़ी धूप में…कड़ी ठंड में…बारिश में। रूखा-सूखा जो भी आगे डाल दिया जाय, चर लेने को विवश हैं। न डाला जाय तो खड़ी-बैठी ऊँघती रहती हैं, जुगाली करती-सी। कहने को कोई रस्सी नहीं है उनके गले में और न ही पैरों को जकड़े है कोई जंजीर। स्वतन्त्र हैं। लेकिन, गहरा कुण्ड है उनके तीन तरफ—वे जानती हैं और यह भी कि चौथी दिशा को अनखुदा रखा गया है उन्हें दुहने हेतु आते-जाते रहने भर के लिए। जब जी चाहे वे स्वयं और जब जी चाहे मालिक लोग समाप्त कर सकते हैं उनकी इहलीला। दुर्घटनाएँ हमेशा होती ही नहीं, की भी जाती हैं दुनियाभर में। सिर्फ भारत है, जहाँ हर स्तर पर संरक्षण के हजारों-हजार दावों के बावजूद भी बदहाल हैं गायें… बदहाल हैं लड़कियाँ।
शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2010
दूध वाले भैया
शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2010
प्रगति मैदान, नई दिल्ली की यात्रा
दोस्तो,
नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला,2010 दिनांक 30 जनवरी, 2010 से जारी है और 7 फरवरी, 2010 तक चलेगा। अनेक बोलियों, भाषाओं और लिपियों के जानकार इस मेले में आ-जा चुके होंगे और आगे भी आयेंगे। प्रगति मैदान के एक हॉल के बाहर जब से यह बोर्ड लटकाया गया है तब से अब तक हिन्दी-साहित्य के अमिताभ बच्चन कहे जाने वाले…से लेकर विदूषक कहे जाने वाले…नहीं, यहाँ मैं किसी का नामोल्लेख नहीं करूँगा, बस यह कहूँगा कि हर वर्ष हिन्दी-पखवाड़ा और हिन्दी-सप्ताह मनाने के नाम पर लाखों रुपए लुटा डालने वालों से लेकर लूट ले जाने वालों तक, हर स्तर का विद्वान यहाँ से अवश्य ही गुजरा होगा। मैं आपसे सिर्फ यह जानना चाहता हूँ फोटो में दर्शाया गया यह शब्द किस भाषा का है? इसी क्रम में कुछ-और फोटो भी मैं आगे प्रकाशित करने की अनुमति आपसे चाहूँगा।
--बलराम अग्रवाल