(यमुनानगर से अविनाश वाचस्पति द्वारा प्रेषित विशेष रपट)
अक्टूबर,१ यमुनानगर। सरकार ऐसी नीति बनाए, जिससे नए फिल्मकार के सामने फंड और प्रोड्यूसर की दिक्कतें खत्म हों और स्वतंत्र सिनेमा को बढ़ावा मिल सके। यह विचार स्ट्रींग्स बाउंड बाई फेथ के निर्माता संजय झा व बिओंड बॉडर्स की निर्मात्री शर्मिला मैती ने प्रेस कांफे्रंस के दौरान पत्रकारों से कहे।
संजय झा ने कहा कि वे लोग भाग्यशाली होते हैं,जिन्हें आसानी से प्रोड्यूसर व फंड मिल जाता है। स्वतंत्र सिनेमा को बढ़ावा मिलने से फिल्म निर्माण के क्षेत्र में ऐसे लोगों का पदार्पण होगा, जो फिल्म बनाने के इच्छुक हैं। हालांकि आज डिजिटल मीडिया का युग है, जिसमें नित नए प्रयोग किए जा रहे हैं। अब मोबाइल पर भी फिल्में देखी और बनाई जा सकती है। एक अन्य सवाल के जवाब में झा ने कहा कि बिहार के भागलपुर जिले के सुल्तानगंज जैसे छोटे शहर से होने के बावजूद भी उन्होंने लक्ष्य को नहीं भुलाया है। छोटे शहरों से भी अच्छे फिल्मकार सामने आ रहे हैं जिनके मन में इस विधा के प्रति सच्ची चाहत है अपनी फिल्म के बारे में बतलाते हुए उन्होंने कहा कि मेरी फिल्म एक यात्रा वृतांत है। जिसमें कुंभ मेले के माध्यम से आस्था का पर्व दिखाया है। इस फिल्म की कहानी वारेन हास्टिंग नाम के एक ब्रिटिश युवक की है, जो नासिक मेले में एक पुजारी के घर ठहरता है और पुजारी की बेटी कृष्णा से पे्रम कर बैठता है। फिल्म की कहानी इसी विषय पर केंद्रित हो आगे बढ़ती है। उन्होंने बताया कि 2003 में 20 लाख लोगों के बीच जाकर एक महीने में इस फिल्म को फिल्माया गया है। । फिल्म बनाते समय उन्होंने व्यावसायिकता से समझौता नहीं कि और ज्वलंत मुद्दे पर फिल्म बनाई है। यह फिल्म कवि बाबा नागार्जुन को समर्पित है। फिल्म कमर्शियल सिनेमा को छूती है। फिल्म का संगीत आसाम के जुबीन गर्ग का है। इस फिल्म के निर्माता मैथ्यू वर्गीस ने कहा कि रजनल क्षेत्र में बनी फिल्में भी विश्व में ख्याति अर्जित कर रही है। उन्होंने कहा कि कहानी व भाषा में ताकत होनी चाहिए,फिल्म हिट होना लाज़मी है।
संजय झा ने कहा कि वे लोग भाग्यशाली होते हैं,जिन्हें आसानी से प्रोड्यूसर व फंड मिल जाता है। स्वतंत्र सिनेमा को बढ़ावा मिलने से फिल्म निर्माण के क्षेत्र में ऐसे लोगों का पदार्पण होगा, जो फिल्म बनाने के इच्छुक हैं। हालांकि आज डिजिटल मीडिया का युग है, जिसमें नित नए प्रयोग किए जा रहे हैं। अब मोबाइल पर भी फिल्में देखी और बनाई जा सकती है। एक अन्य सवाल के जवाब में झा ने कहा कि बिहार के भागलपुर जिले के सुल्तानगंज जैसे छोटे शहर से होने के बावजूद भी उन्होंने लक्ष्य को नहीं भुलाया है। छोटे शहरों से भी अच्छे फिल्मकार सामने आ रहे हैं जिनके मन में इस विधा के प्रति सच्ची चाहत है अपनी फिल्म के बारे में बतलाते हुए उन्होंने कहा कि मेरी फिल्म एक यात्रा वृतांत है। जिसमें कुंभ मेले के माध्यम से आस्था का पर्व दिखाया है। इस फिल्म की कहानी वारेन हास्टिंग नाम के एक ब्रिटिश युवक की है, जो नासिक मेले में एक पुजारी के घर ठहरता है और पुजारी की बेटी कृष्णा से पे्रम कर बैठता है। फिल्म की कहानी इसी विषय पर केंद्रित हो आगे बढ़ती है। उन्होंने बताया कि 2003 में 20 लाख लोगों के बीच जाकर एक महीने में इस फिल्म को फिल्माया गया है। । फिल्म बनाते समय उन्होंने व्यावसायिकता से समझौता नहीं कि और ज्वलंत मुद्दे पर फिल्म बनाई है। यह फिल्म कवि बाबा नागार्जुन को समर्पित है। फिल्म कमर्शियल सिनेमा को छूती है। फिल्म का संगीत आसाम के जुबीन गर्ग का है। इस फिल्म के निर्माता मैथ्यू वर्गीस ने कहा कि रजनल क्षेत्र में बनी फिल्में भी विश्व में ख्याति अर्जित कर रही है। उन्होंने कहा कि कहानी व भाषा में ताकत होनी चाहिए,फिल्म हिट होना लाज़मी है।
फिल्म निर्मात्री शर्मिला मैती ने बताया उनकी फिल्म बिओड बॉडर्स बंगाल व पूर्वी पाक विभाजन पर आधारित है। इस फिल्म में विभाजन के बाद तीन महिलाएं अपनी अनुभवों को बांटती है। हालांकि यह एक डाक्यूमेंट्री फिल्म है,जिसमें गीता घटक व गीता डे मुख्य किरदारों में है। विभाजन का असर औरतों के जीवन पर क्या प्रभाव डालता है, इस बारे में फिल्म में दिखाया गया है।
2 टिप्पणियां:
बहुत ही सुन्दर पोस्ट .बधाई !
अविनाश की बात पूरी तरह सहमत हूं.
चन्देल
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