दोस्तो, गत दिनों आपने बंगलूरु(कर्नाटक) निवासी प्रकाश बेलवाड़ी की टिप्पणी ‘साम्रावाद के बीच’ पढ़ी। इस बार कोटकपूरा(पंजाब) से भाई श्यामसुन्दर अग्रवाल ने अपना यह अनुभव भेजा है—बलराम अग्रवाल
चित्र:बलराम अग्रवाल |
पिछले शुक्रवार को एक मीटिंग में भाग लेने के लिए कोटकपूरा से अमृतसर जा रहा था। बस फरीदकोट से निकलकर बस ज्यादा से ज्यादा पंद्रह किलोमीटर ही चली होगी कि उसका एक टायर पंक्चर हो गया। ड्राइवर किसी तरह उसको ‘तलवंडी भाई’ गाँव के मोड़ तक ले गया। सुबह के सात ही बजे थे। पंक्चर लगाने वाले ने अपनी खोखानुमा दुकान खोली ही थी।
बस उसके आगे जाकर रुक गई। इधर पंक्चर टायर को निकालने-बदलने का काम शुरू हुआ, उधर सवारियों में से किसी के मुँह से अन्ना हज़ारे और सरकार की बात निकली। वह बहुत कम पढ़ा-लिखा पंक्चर लगाने वाला भी इस विषय पर टिप्पणी करने से नहीं रह सका। उसने कहा—‘करोड़ाँ खान वाले साध नूँ चोर दस्सी जांदे ऐ।’(करोड़ों रुपए खा जाने वाले लोग साधु को चोर बता रहे हैं।) उस का इशारा कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी द्वारा अन्ना हज़ारे को आकंठ भ्रष्टाचार में डूबा बताया जाने की तरफ था।
पंजाब के एक अंदरूनी गाँव में सड़क किनारे खोखा डालकर रोजी-रोटी कमाने वाले लगभग अनपढ़ ग्रामीण की यह टिप्पणी उन चाटुकारों के मुँह पर करारा तमाचा है जो कह रहे हैं कि अन्ना के आंदोलन का प्रभाव केवल शहरों तथा मध्यम वर्ग तक ही सीमित है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें