शुक्रवार, 13 नवंबर 2009

केरल यात्रा-1



मित्रो, पिछले माह यानी अक्तूबर 2009 की 16 तारीख से मैं सपत्नीक अपने बेटों के पास बंगलौर में हूँ। इस दौरान हम सबने कर्नाटक की कुर्ग-घाटी, जो कि कॉफी की खेती के लिए विश्व में प्रसिद्ध है तथा केरल के कुछ स्थानों की यात्रा की। इस दौरान देश में और विश्व में अनेक प्रिय-अप्रिय घटनाएँ घटीं। इस दौरान कवि-कथाकार मित्र सुभाष नीरव के पिताश्री ने देह का त्याग किया तो मेरे प्रिय पत्रकार जनसत्ता के यशस्वी संपादक प्रभाष जोशी भी इस संसार को विदा कह गए। अभी तक मैं जनगाथा, कथायात्रा तथा लघुकथा-वार्ता के माध्यम से लघुकथा-साहित्य आपके समक्ष प्रस्तुत करता रहा हूँ। अपना दौर के माध्यम से प्रयास रहेगा कि समय और समाज से जुड़े अपने मित्रों के अनुभवों को आपके साथ बाँट सकूँ। इसकी पहली किश्त के रूप में प्रस्तुत है केरल-यात्रा से जुड़ा यह अनुभव:





सरकारी आँकड़ों की बात करें तो केरल भारत का पहला ९१ प्रतिशत साक्षर प्रदेश है। स्कूल स्तर से ही यहाँ पर मलयालम और अँग्रेजी पढ़ाने का प्रावधान है। मलयालम यहाँ की प्रांतीय भाषा है और घोषित रूप से प्रशासकीय भाषा भी। मलयालम को भारत की संवैधानिक भाषा के रूप में मान्यता-प्राप्त है। केरल में रहने वाले मूल द्रविण सामान्यत: तमिल भाषा बोलते हैं जो कि चेर शासकों के समय में राज-काज की भाषा थी। मलयालम ने अपना प्रभाव 10वीं सदी के आसपास फैलाना शुरू किया। आम आदमी द्वारा आसानी से समझे जा सकने वाले आसान शब्दों से लैस होने के कारण यह तेजी से अपनायी जाने लगी। आज मलयालम की अपनी लिपि तथा अपना लिखित साहित्य है। ऐसा माना जाता है कि आर्यों द्वारा प्रसारित संस्कृत के प्रभाव के कारण मलयालम को किंचित क्षति पहुँची थी। नम्बूदिरियों द्वारा भी समाज में संस्कृत का खुला प्रयोग किया गया, लेकिन मलयालम की लोकप्रियता और शब्द-भंडार इस सबसे कम होने के स्थान पर बढ़े ही। स्थानीय लोगों ने संस्कृत के शब्दों को मलयालम में ढालकर प्रयोग करना शुरू कर दिया। इसी से इसे मणिप्रवलम भी कहा जाता है। वर्तमान मलयालम में लगभग 53 अक्षर हैं जिनमें से 20 दीर्घ व ह्रस्व स्वर हैं तथा शेष 33 व्यंजन। सन् 1981 से मलयालम को की-बोर्ड के उपयुक्त बनाने की दृष्टि से इसकी लिपि में कुछ सुधार किए गए। यही कारण है कि टाइप की दृष्टि से इन दिनों मलयालम में 90 अक्षर हैं।


























ऐसा बहुत बार होता है कि हम अपने मददगार के तरकश को उन तीरों से खाली समझने की गलती कर बैठते हैं जो हमारी जान बचाने के लिए बहुत जरूरी होते हैं और नकारात्मक अनुमानों के सहारे बड़ी आसानी से उस जंग को हार जाते हैं जिसे जीता जा सकता था।






नोट:इस पोस्ट में संलग्न सभी फोटो मेरे कनिष्ठ पुत्र आदित्य अग्रवाल द्वारा खींचे गए हैं। इस बार के फोटो एलेप्पी(Alleppey) स्थित बैक-वॉटर्स के हैं।











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