रविवार, 11 जुलाई 2010

अवशेष एक बुजुर्ग पीपल और हिन्दी-वर्तनी के

सेलुलर जेल, पोर्ट ब्लेयर के प्रांगण में प्रत्येक कार्यदिवस की शाम को हिन्दी व अंग्रेजी भाषा में ध्वनि एवं प्रकाश कार्यक्रम प्रस्तुत किया जाता है। गुणवत्ता और प्रस्तुतिकरण के स्तर पर इसे नि:संदेह स्तरीय कहा जा सकता है। कुछेक कमियों के बावजूद, देश के प्रति भावुक हृदय रखने वालों में यह रोमांच का संचार करने में पूर्णत: सक्षम है। इसमें राष्ट्रीय स्वाधीनता-संग्राम से जुड़ी कई ऐसी बातों का उल्लेख होता है जिनका आम-नागरिक को नहीं पता। ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर इसके प्रांगण में पीपल के एक पेड़ का होना भी बताया जाता है। पीपल का वह पेड़ काला पानी की सजा प्राप्त कैदियों पर जेल के दुष्ट अधिकारी जनरल बारी के प्रत्येक अत्याचार का चश्मदीद गवाह रहा। 1876 के आसपास निर्मित सेलुलर जेल के उन पीपल-बाबा की आयु इस समय कम-से-कम 150 वर्ष होनी चाहिए थी, क्योंकि 15 वर्ष आयु तो उनकी उस समय भी रही ही होगी। हो सकता है कि उक्त प्रांगण में आयु की दृष्टि से उनसे छोटे-बड़े एक नहीं अनेक पीपल-वृक्ष और-भी रहे हों; और इसमें तो दो राय हो ही नहीं सकतीं कि अन्य-भी अनेक प्रजातियों के वृक्ष उस काल में वहाँ रहे होंगे जो तत्कालीन ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा समय-समय पर निर्मित जेल के सौंदर्यीकरण की योजनाओं की भेंट चढ़ते रहे होंगे। खैर, इन दिनों जो पीपल-वृक्ष सेलुलर-प्रांगण में खड़ा है, उसकी आयु 15-20 से अधिक नहीं लगती। ऐसा प्रतीत होता है कि कैदियों पर ब्रिटिश-दानवों के अत्याचारों का एक चश्मदीद गवाह वहाँ खड़ा रखने के व्यापारिक-उद्देश्य से काफी बाद में उसे संरक्षित किया गया है। बहरहाल, अंडमान-निकोबार द्वीपसमूह के पोर्ट ब्लेयर स्थित (संभवत:) पुरातत्व संग्रहालय में मूल पीपल-वृक्ष के तने का एक भाग रखा देखकर एकदम ऐसा लगा जैसे अपने किसी पूर्वज की लोहे-सी मजबूत हड्डी का दर्शन हुआ हो। मन श्रद्धा और क्षोभ दोनों से लबरेज हो गया। क्षोभ से क्यों? कई कारण रहे जिनमें एक कारण उसके बारे में सूचना प्रदान करने वाली पट्टिका में लिखित हिन्दी के शब्दों में वर्तनी की अनगिनत अशुद्धियाँ भी हैं। उसे देखकर यह समझते हुए भी कि इसका देवनागरी में लिखा जाना भी एक उपलब्धि कहा जाना चाहिए, पता नहीं क्यों मुझे उक्त पीपल-वृक्ष के साथ-साथ हिन्दी का भी कटा-शरीर वहाँ रखा प्रतीत हुआ। सितम्बर माह में शुरू होने वाले हिन्दी सप्ताह और हिन्दी पखवाड़ा आयोजनों में किस-किस स्रोत से पैसा खींचना है अथवा पैसा बहाकर किन महानुभावों को कृतार्थ करना है, यह सब या तो निश्चित हो चुका होगा या निश्चित होने की प्रक्रिया में होगा। बहरहाल, आपके अवलोकनार्थ प्रस्तुत हैं स्वाधीनता-सैनिकों पर ब्रिटिश अत्याचारों के मूक-गवाहों के कुछ फोटो:




6 टिप्‍पणियां:

उमेश महादोषी ने कहा…

विसंगतियों के प्रति सामान्य-जन एवं संबंधितों का ध्यानाकर्षण करने का आपका अपना ही तरीका है। साथ ही इस ब्लॉग के माध्यम से महत्वपूर्ण जानकारियां भी उपलब्ध कराना अच्छा लगा। धन्यवाद।

सहज साहित्य ने कहा…

वर्तनी की अशुद्धियाँ लापरवाही का परिणाम हैं। शासन में यह यज्ञ बहुत निष्ठापूर्वक किया जा रहा है ।

प्रदीप कांत ने कहा…

यह जानकारी मुझे पहली बार प्राप्त हुई। शुक्रिया...

pran sharma ने कहा…

Bhavishya mein yun hee jaankaariyan
dete rahiye.

सुनील गज्जाणी ने कहा…

bal raam jee
pranam 1
ek achchi bodh karne wali zankari pradan ki hai ,
sadhuwad !

Ajit Kumar Mishra ने कहा…

महोदय सेलुलर जेल 1876 में नहीं बल्कि 1898 में बनना शुरु हुई थी तथा 1906 में बन कर तैयार हुई थी। साथ शाम के शो में ही यह स्पष्ठ कर दिया जाता कि मूल पीपल का पेड़ खत्म हो चुका है तथा उसके स्थान पर दूसरा पीपल का पेड़ लगाया गया है।