रविवार, 7 अगस्त 2011

दु:खभरे दिन बीते रे भैया…/बलराम अग्रवाल


कई माह बाद, यानी कि 23-24 मार्च, 2011 को प्रिय कालीचरण प्रेमी से मिलने जाना शुरू करने के बाद अब अस्पतालों के चक्कर लगाने से मुक्त हुआ हूँ। कभी कोई मित्र तो कभी कोई नाते-रिस्तेदार अस्पतालों में दाखिल होते रहे। कुछ को अस्पताल से छुट्टी मिली, संतोष हुआ; लेकिन कुछ को दुनिया छोड़नी पड़ी, हृदय विलाप कर उठा। कुल मिलाकर मन और तन दोनों अस्वस्थ ही रहे।
15 जुलाई, 2011 के आसपास एस॰एम॰एस॰ आए कि क्या आप पूरे चार दिन21 से 24 जुलाई तकअण्णा हजारे के आंदोलन मेंफील्ड सर्वे के लिए वॉलन्टियर कर सकते हैं? मैं उन्हें कोई जवाब नहीं दे सकता था क्योंकि मेरे छोटे साढ़ू नई दिल्ली के सर गंगा राम हॉस्पीटल के आई॰सी॰यू॰-4 में मौत से जूझ रहे थे। दुर्भाग्यवश 19 जुलाई को उन्होंने देह त्याग दी।
जलसा शुरू होने से पहले: सर्वश्री डॉ॰ गंगाप्रसाद विमल, राजेन्द्र यादव, डॉ॰ नामवर सिंह और बलराम अग्रवाल
31 जुलाई, 2011 को शाम 5 बजे मेधा प्रकाशन के स्वामी भाई अजय कुमार की कॉल पर मैंने ऐवाने ग़ालिब, नई दिल्ली में हंस की 25वीं सालगिरह के जलसे में भाग लिया। वही अपनी गाड़ी में मुझे और मेरे बेटे आदित्य को साथ लेकर गये। काफी उत्सुकता थी, लेकिन वह जलसा अपनी पूर्व-गरिमा के अनुरूप सम्पन्न नहीं हो पाया। अजय नावरिया के मसखरे संचालन ने उसे बहुत चीप-सा बना दिया। सम्मानित होने वाले व्यक्तियों के बारे में मैंने पहली बार किसी उत्कृष्ट मंच से ऐसी घोषणाएँ सुनीं कि किसको उपहारस्वरूप दो-दो पैंट-कमीज, किसको साड़ी, किसको सूटपीस और किसको शॉल दिया जा रहा है! लोग प्रशस्ति पत्र, प्रतीक चिह्न और धनराशि का जिक्र जरूर करते है, लेकिन सम्मान के साथ। आ॰ नामवर जी को भी उन्होंने साहित्यिक पत्रकारिता और हंस विषय पर बोलने का उचित माहौल बनाकर नहीं दिया सो वे भी इधर-उधर की हाँकते रहे। कुल मिलाकर निराशा ही हाथ लगी।
दो दिन पूर्व पुन: एस॰एम॰एस॰ था—‘अरविन्द केजरीवाल के साथ सरकारी लोकपाल के खिलाफ प्रदर्शन में हिस्सा लें। 5 बजे, जन्तर मन्तर। रविवार, 7 अगस्त। जरूर आएँ। सभी को बताएँ।
दोस्तो, समझ लीजिए कि कई माह बाद पहली बार घर से बाहर 31 जुलाई, 2011 को निकला था और दूसरी बार आज शाम 4 बजे। जन्तर-मन्तर पर माहौल बेहद उत्साहवर्द्धक था। दिल्ली पुलिस केन्द्र सरकार के अन्तर्गत आती है जिसने प्रदर्शन स्थल के दोनों मुहानों को लोहे के भारी-भरकम स्टैंड्स से घेरा हुआ था। जाने-आने के लिए मात्र एक व्यक्ति के योग्य जगह बीच में छोड़ी हुई थी। मैं भीतर गया। जत्थे के जत्थे नौजवान युवक-युवतियाँ हाथों में तिरंगा लहराते हुए गश्त कर रहे थे, बिल्कुल ऐसे जैसे बहुत बड़े पिंजरे में भी शेर अपनी मुक्ति की चाह में चकराता रहता है। 15 अगस्त के दिन पुरानी दिल्ली के सीलमपुर-आकाश में इतनी पतंगे उड़ती नजर नहीं आती होंगी, जितने तिरंगे 7 अगस्त को जन्तर मन्तर के नीले आकाश में अपनी छटा बिखेर रहे थे। वंदे मातरम् प्रारम्भ से ही देशभक्तों का प्रिय मंत्र रहा है। वहाँ का सारा वातावरण इस मंत्र अनहद जाप से सराबोर था। उक्त सभा में सर्वश्री अरविन्द केजरीवाल के अलावा रंगनिर्देशक अरविन्द गौड़, केन्द्रीय सूचना आयोग के आयुक्त श्री शैलेश गाँधी, अनेक देशों में भारतीय उच्चायुक्त रह चुकी आ॰ मधु भादुरी एवं अन्य अनेक बुद्धिजीवी व देश और दिल्ली के कोने-कोने से आए जन कार्यकर्ता शामिल थे। शाम को ठीक 7 बजे मशाल जुलूस निकाला गया और संसद में सरकार की ओर से पेश लोकपाल बिल की प्रतियाँ आग के हवाले कर विरोध प्रदर्शन किया गया। उसके पश्चात सभी लोग रुचि भट्टल की हत्या की न्यायिक जाँच के लिए धरने पर बैठे उनके परिजनों के अनुरोध पर कैंडिल मार्च में शामिल हुए और इण्डिया गेट तक गये। इतना अनुशासित विरोध प्रदर्शन देखना और अपने-आप को उसका हिस्सा बनते पाना रोमांच प्रदान करता है। अपने अब तक के जीवन में विभागीय हड़तालों में तो कई बार बढ़चढ़कर हिस्सा लिया। वेतन भी कटवाया। लेकिन किसी राष्ट्रीय स्तर के आंदोलन में मैंने पहली बार शिरकत कीउम्र के 59वें वर्ष में। अच्छे काम जब शुरू हों तभी अच्छे लगते हैं। अपना दौर के इस अंक में प्रस्तुत हैं वहाँ के कुछ चित्र
मैं अण्णा हजारे हूँ--शक्लो-सूरत से न सही मन और मन्तव्य से पूरी तरह

सरकारी लोकपाल यानी होलिका-दहन

आंदोलन समर्थकों ने तिरंगों से आसमान को जैसे पाट ही डाला हो

'सरकारी लोकपाल धोखा है' और 'वंदे मातरम् ' की उच्च ध्वनि के साथ राष्ट्रीय ध्वज फहराते युवा

अण्णा हजारे की अगुआई में मंचस्थ आंदोलनकर्ता

विरोध प्रदर्शन में स्त्री-पुरुष, विकलांग और वृद्ध सभी शामिल हुए

6 टिप्‍पणियां:

राजेश उत्‍साही ने कहा…

बलराम जी, हम ज्‍यों ज्‍यों इस दुनिया के रहस्‍य सुलझाने की कोशिश करते हैं,त्‍यों त्‍यों यह और रहस्‍यमयी होती जाती है। शायद इसीलिए कहा गया है कि समय के गर्भ में क्‍या है यह जानना बड़ा मुश्किल है।
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हंस की कहानी किसी और ब्‍लाग पर विस्‍तार से पढ़ने को मिली। उसका स्‍वर भी यही था।
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अन्‍ना हजारे का आंदोलन क्‍या रूप लेगा कुछ पता नहीं।

shail ने कहा…

विचारोत्तेजक प्रस्तुति के लिए आभार। अभी भी जो सच्चाई और ईमानदारी से देश और समाज के लिए कुछ करना और बदलना चाहते हैं , भगवान उन्हें पूर्ण सफलता दे-इसी शुभकामना के साथ,

-शैल अग्रवाल

Rachana ने कहा…

aapke sadhu bhai ka padh kar bahut dukh huaa .bhagvan unki aatma ko shanti de
aapne sahi jab hum kisi achchhe kaam ka hissa bante hain to bahut hi achchha lagta hai .aapka likha pdh ka laga ki kitna achchha anushashit march raha hoga
saader
rachana

बलराम अग्रवाल ने कहा…

Roop Singh Chandel to me
show details 8:29 PM (23 minutes ago)

भाई बलराम,
तुमने बहुत अच्छा लिखा है. यदि तुमने इन sms की चर्चा मुझसे की होती तो मैं भी इस यज्ञ का हिस्सा बनता. खैर, अब सही १६ अगस्त दूर नहीं है.सही कहा, कोई काम शुरू करने की कोई उम्र नहीम होती, जब भी शुरू करना चाहें तभी वह उपयुक्त समय होता है. तुम्हारे एक भी चित दिखते नहीम. पहले भी ऎसा रहा. इन चित्रों को अलग से मुझे अवश्य भेज देंगे.

बलराम अग्रवाल ने कहा…

Suresh Yadav to me
show details 10:42 PM (13 hours ago)

भाई बलराम अग्रवाल जी, मार्च से जुलाई तक के भयावह समय का पता चला ही नहीं. आप सहते रहे, और चारा ही क्या था. आचार्य रामचंद्र शुक्ल के लेख--उत्साह में पढ़ा था कि-दुःख में जो स्थान भय का होता है सुख में वाही स्थान उत्साह का होता है. मुझे लगता है सात अगस्त के आन्दोलन का उत्साह सुख की गहन तलाश थी और वह वहीँ हो सकती थी जहाँ उत्साह था लेखक का अपना जीवट भी ऐसी उत्साहवर्धक परस्थितियाँ पैदा करने में सक्षम होता है. आप ऐसे ही लेखक हैं.

Dr. Sudha Om Dhingra ने कहा…

बलराम जी पढ़ कर भाव विह्वल हो गई | ऐसा उत्साह तो क्रांति ला सकता है |