गुरुवार, 26 जुलाई 2012

पाठकों और साथी रचनाकारों से क्या वाकई इतने दूर थे ललित कार्तिकेय?/बलराम अग्रवाल




ललित कार्तिकेय
दोस्तो,
जिन दिनों सुपर स्टार राजेश खन्ना की विदाई पर चैनल्स और अखबार एक से एक उल्लेखनीय समाचार यहाँ-वहाँ से खोदकर दिखा और छाप रहे थे, एकदम उन्हीं दिनों हिन्दी का एक सशक्त रचनाकार और अनुवादक भी हमसे छिन गया। पता चला?
आओ, अपने समय के रचनाकारों की अपने ही प्रति उदासीनता पर कथाकार अमर गोस्वामी के बाद एक बार पुन: विचार करें।
मेधा बुक्स द्वारा 2001 में प्रकाशित ललित कार्तिकेय की एक अवश्य पठनीय किताब
ललित कार्तिकेय के निधन का समाचार भी पहले मेधा बुक्स के अजय जी से मिला जिसे उन्होंने कथाकार-पत्रकार वीरेन्द्र जैन से पुष्ट कराया तथा मेरे पूछने पर कथादेश के संपादक हरिनारायण जी ने भी इसे पुष्ट किया। उसके बाद मैंने इस दु:खद खबर को अपने ब्लॉग अपना दौर में पोस्ट करने के लिए ललित जी की फोटो को इंटरनेट पर तलाशने की कोशिश की और परिणाम वैसा ही निकला जैसा कि अमर गोस्वामी की फोटो वहाँ तलाशने का निकला था। अमर सिंह की तर्ज़ पर ललित मोदी के फोटो तो अनेक मिले, ललित कार्तिकेय का एक भी नहीं। तब, शाम तक अजय जी ने ही अपने खजाने से उनकी एक फोटो तलाश करके मेल द्वारा मुझे भेजी और खबर को ब्लॉग पर लिखकर मैंने फेसबुक से लिंक कर दिया। इसे लिंक करने के अगले ही मिनट अनिल जनविजय ने करीब-करीब यों कमेंट किया—‘चलो, ललित को यह खबर नहीं थी, अब मिल गई। मैंने इसे पढ़कर यही अनुमान लगाया कि अनिल ने इसे पढ़कर ललित जी से बात की होगी और अनेक साथियों से पुष्ट होने के बावजूद एक अप्रिय समाचार मेरे द्वारा फ्लैश हो गया है! मैं घबरा गया और तुरन्त पोस्ट को फेसबुक से हटाकर अनिल जनविजय को अपना स्पष्टीकरण मैसेज किया तथा अजय जी को सारे वाक़ये से अवगत कराया।
आज, भाई रूपसिंह चन्देल के फेसबुक वॉल पर ललित कार्तिकेय के न रहने का समाचार पुन: पढ़कर मैं चौंका (भले ही उन्होंने उसे मेरे ब्लॉग के हवाले से लिखा था)। मैंने चन्देल जी को फोन किया। मालूम हुआ कि यह कुसमाचार ज्ञानप्रकाश विवेक आदि अनेक साहित्यिक मित्रों से पुष्ट करके ही उन्होंने फेसबुक पर डाला है।
मित्रो, तात्कालिक लाभ और हानि का आकलन करके सम्बन्धों को बनाए रखने न बनाए रखने का निर्णय करने वाले साहित्यिक कहे जाने के बावजूद विशुद्ध असाहित्यिक और शुद्ध व्यावसायिक समय में ऐसे हादसे कदम-कदम पर हो सकते हैं। ऐसे में भावुक हृदयों द्वारा सावधानी बरतना जरूरी है।

2 टिप्‍पणियां:

राजेश उत्‍साही ने कहा…

दुखद समाचार है। मैं भी आपके ब्‍लाग पर गया था वहां न समाचार न देखकर लगा कि तकनीकी गड़बड़ की वजह से शायद नहीं आ रहा है।
*

श्रदांजलि।

सुभाष नीरव ने कहा…

यह एक दुखद खबर है… मेरी विनम्र श्रद्धांजलि !