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छ्त्रसाल स्टेडियम:2अक्टूबर, 2013 |
आज, 2 अक्टूबर 2013 को देश ने महात्मा गाँधी का तथा लाल बहादुर शास्त्री का जन्म दिन तो मनाया ही, एक और महत्त्वपूर्ण पर्व भी राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के योग-प्रबुद्ध वासियों ने मनाया। यह पर्व था--भारतीय योग संस्थान द्वारा आयोजित '47वाँ योग दिवस समारोह'। किसी को पता चला? मुझे भी न चलता अगर भारतीय योग संस्थान' से गहरे जुड़े मेरे मित्र श्री बनारसीदास गुप्ता कल रात मुझे यह सूचना न देते। उन्होंने मुझसे कहा कि--नई दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में आसन और प्राणायाम पर केन्द्रित बहुत बड़ा समारोह आयोजित होगा, आपको अवश्य आना है। उनका आदेश मैं टाल न सका; सो आज सवेरे, उनके निर्देशानुसार ठीक 05:15 बजे नवीन शाहदरा के 'मुस्कान चौक' कहे जाने वाले स्थान पर जा पहुँचा था और उपस्थित लोगों के साथ संस्थान की ओर से निर्धारित बस में जा बैठा जिसने कुछ ही मिनटों में छत्रसाल स्टेडियम पहुँचा दिया। फरीदाबाद आदि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के अन्य नगरों से भी बसों द्वारा बड़ी संख्या में लोग वहाँ पहुँचे हुए थे।
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छत्रसाल स्टेडियम:16 अगस्त, 2011 |
छत्रसाल स्टेडियम पहुँचकर मुझे अचानक, अगस्त 2011 का वह दिन याद आ गया, जब अन्ना हजारे जी के समर्थन में राजघाट पहुँचे हुए अनेक लोगों को गिरफ्तार करके बसों द्वारा यहाँ पहुँचाया गया था। स्वयं मैं और मेरे अग्रज श्रीयुत प्राण जोशी राजघाट से गिरफ्तार किए गये लोगों में शामिल थे। पुलिस ने शाम तक हमें बन्धक रखा और शाम को बोले--अब आप घर जाइये। शाम को भी बारिश हो रही थी। अन्ना जी के बारे में स्पष्ट सूचनाएँ नहीं मिल पा रही थीं। कुमार विश्वास वहाँ पर हमारे अगुआ थे। तय हुआ कि हम कहीं नहीं जायेंगे, रातभर यहीं रहेंगे। उस समय ड्यूटी पर तैनात पुलिस अधिकारियों व सिपाहियों की बेचारगी देखने वाली थी। हमें गिरफ्तार करके जो संतोष उन्होंने महसूस किया होगा, स्टेडियम न छोड़ने का हमारा फैसला सुनकर वह संतोष पूरी तरह ग़ायब हो चुका था। स्टेडियम में हमारे जमे रहते वे आखिर, अपनी ड्यूटी से मुक्त कैसे हो सकते थे? जैसे-जैसे रात गहराई, उनके चेहरे पर अपने घर न जा पाने की चिंता और तनाव साफ-साफ झलकने लगे थे।
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कुश्ती आदि के अभ्यास-कक्ष का द्वार |
आज की तरह, वह भी सुबह का ही समय था। अन्तर केवल यह था कि उस समय झमाझम तेज बारिश हो रही थी और इस समय सूर्यदेव प्रसन्न मुद्रा में विराजमान थे। उस समय स्टेडियम के बाहर-भीतर पुलिस ही पुलिस और मीडियाकर्मी ही मीडियाकर्मी थे लेकिन आज…आज नज़ारा बदला हुआ था। टोपी पर 'मैं अन्ना हूँ' का स्थान 'मैं आम आदमी हूँ' ने ले लिया है। केजरीवाल समर्थक आज स्टेडियम के अन्दर नहीं, बाहर खड़े थे--उनके द्वारा संयोजित 'आम आदमी पार्टी' के लिए चन्दा और समर्थन जुटाने की कवायद में।
एक और बात आज देखने में आई--खेलों के माध्यम से देश की सेवा में जुटी किशोर और युवा पीढ़ी के दर्शन हुए। इस पीढ़ी की जितनी प्रशंसा की जाये, कम है। नि:स्वार्थ भाव से देश की गरिमा की रक्षा करने हेतु प्राणपण से श्रम करती इस किशोर व युवा पीढ़ी को मेरा नमन!
सारी स्थितियों की तुलना स्वरूप एक-दो चित्र यहाँ और शेष को अपनी फेसबुक एलबम में पोस्ट कर रहा हूँ। देखिए:
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पकड़ मज़बूत बनाने का अभ्यास |
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मित्रों के लिए बादाम आदि खरल में पीसता किशोर |
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आम आदमी पार्टी के कार्यकर्त्ता |
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