NAMAN AGARWAL |
हमारे परिवार और अड़ोस-पड़ोस में आइस-पाइस, कबड्डी,
कुश्ती, इप्पी-दुप्पी, डंडा फेंक जैसे नुक्कड़ टाइप के खेल खेलने का ही चलन रहा; वह
भी मेरी पीढ़ी तक। छोटे भाई-बहनों ने शायद मेरे जितना भी आउटडोर नहीं खेला।
नई पीढ़ी में, मेरे बड़े बेटे ने जूनियर स्कूल
स्तर पर खो-खो में भाग लिया और ट्राफी भी जीती; लेकिन बाद में वह विद्यालय के खेल-शिक्षक
की भेदभरी नीति का शिकार होकर टीम से बाहर हो गया। उन्होंने अपने किसी परिचित के बेटे
को टीम में रख लिया। उनकी इस कारस्तानी से बेटे का विश्वास खेल में ‘अच्छा करके जगह
बनाने’ की सोच से उठ गया। उसके बाद मेरे बहुत उकसाने पर भी उसने किसी खेल में हिस्सा
लेने में रुचि नहीं दिखाई। शिक्षक-प्रशिक्षक यदि लालची और संवेदनहीन हों तो अपने शिष्य
का तो अंतहीन अहित कर ही देते हैं, खुद भी ‘पैसे का कीड़ा’ ही बनकर रह जाते हैं, गुरु
हनुमान या रामकृष्ण परमहंस नहीं बन पाते।
2013 में मेरे छोटे भाई ने उसकी रुचि के अनुरूप
अपने बेटे नमन को दिल्ली की एक क्रिकेट अकादमी में दाखिला दिलाया। बेहतर खेल प्रशिक्षण
ने उसमें बैठे अच्छे क्रिकेटर को जगा दिया। अकादमी के प्रशिक्षक ने उसके गुणों के आधार
पर उसे विकेट कीपर बैट्समैन के रूप में विकसित करना शुरू किया। उसमें अच्छा प्रदर्शन
करते हुए उसने विकेट के पीछे कैच लेने, स्टंप आउट करने और बल्लेबाज की हैसियत से बेहतर
रन बनाने का सिलसिला शुरु किया और कई आपसी मैच अपनी टीम को जिताए। एक दिन उसने जब यह
बताया तो मैंने कहा, “अरे वाह, तू तो फारुख इंजीनियर और धोनी की लाइन पर चल रहा है।”
“लेकिन मैं लेफ्टी हूँ।” उसने कहा।
“यह गिलक्रिस्ट की लाइन पर चल रहा है।” इस पर
पास बैठे आकाश ने मेरे वाक्य को सुधारा।
“यह और भी अच्छा है।” मैंने कहा, “भारत को एक
बेहतरीन लेफ्ट हैंडर विकेट कीपर बैट्समैन की बहुत जरूरत है।”
सुनकर वह शरमा-सा गया।
*****
इस
साल नमन ने नवीं कक्षा की परीक्षाएँ दी थीं। बहुत अच्छा रिजल्ट नहीं ले पाया। मन उदास
तो हुआ, लेकिन हताश नहीं। हमने उसे ज्यादा डाँटा-फटकारा नहीं। कहा कि—खेल जितना ही
ध्यान उसे पढ़ाई में भी लगाना चाहिए। उसने बेहतर मार्क्स लाने की शपथ भीतर ही भीतर ली
और पढ़ाई में लग गया। 2015 में वह 10वीं की परीक्षा देगा।
गत 18 जून से 22 जून तक चण्डीगढ़ की स्काईलाइन
क्रिकेट अकादमी ने 6ठी आल इण्डिया क्रिकेट लीग का आयोजन किया था। उसमें देशभर की क्रिकेट
अकादमियों के 16 वर्ष से कम उम्र वाले क्रिकेटरों की करीब 8 टीमों ने भाग लिया था।
नमन के क्रिकेट कोच भी अपनी अकादमी की टीम को लेकर गये थे। दिल्ली से एक अन्य अकादमी
की टीम समेत कुल 2 टीमें गई थीं, नमन ने बताया।
20 जून को हुए मैच में नमन की टीम को 222 रनों
का लक्ष्य मिला। वह ओपनर बैट्समैन है। मैदान में उतरकर उसने 12 छक्के और 14 चौके लगाते
हुए 123 रन बनाए और अंत तक आउट नहीं हुआ। उसकी इस अभूतपूर्व पर्फारमेंस की बदौलत टीम
फाइनल में पहुँच गई। उसे ‘मैन ऑफ द मैच’ ट्राफी मिली।
कल 22 जून को फाइनल खेला गया। फील्डिंग करते
हुए उसका दायाँ पैर मोच खा गया। शायद इसी वजह से वह मात्र 10 रन ही बना सका; लेकिन
उसके एक अन्य साथी ने अच्छी पर्फारमेंस दिखाते हुए मैच को जीत लिया।
इस टूर्नामेंट में नमन में तीन मैचों में सबसे
अधिक 161 (28+123+10) रन बनाए।
कल 22 जून को हमारे विवाह की 35वीं सालगिरह थी।
नमन ने अपने ताऊ जी-ताई जी को बेहतरीन तोहफा लाकर दिया।
NAMAN AGARWAL |
जिओ मेरे बच्चे! सिर्फ परिवार
के या दोस्तों के लिए ही नहीं, अपने देश के लिए इससे भी बेहतर करके दिखाओ।
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