![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgqr_pTL7MWcm2GbflqNOI9swGC-AcqOFZc1ur-SWzJAFIq8z0tq-Bl7ILqtuVsYH5c8A_9bzhc9y1tdNI-Yh-obCZBriNeB756BpVW1NCTQruaX86UMqOXYIXqid4CG79tKcPcHHAuYsaw/s400/IMG_0994.JPG) |
असुविधाओं से भरी यात्रा की थकान, गैर जिम्मेदार राजनीतिकों और अशिक्षा तथा अंध-परम्पराओं में जकड़े सामाजिकों के प्रति क्षोभ से उत्पन्न आक्रोश, सारी परेशानियाँ और हिचक एक तरफ तथा ताजी हवा और प्रकृति के संसर्ग की बदौलत प्राप्त प्रसन्नता एक तरफ। (बेटी अपेक्षा अपने छोटे बेटे नेहिल के साथ प्रसन्न मुद्रा में) चित्र:बलराम अग्रवाल |
कल, 4 मई, 2015 को बुद्ध
पूर्णिमा के अवसर पर उक्त अहार क्षेत्र के मंदिरों में जाने का अवसर मिला। अवंतिका
देवी का रास्ता थोड़ा अलग कटता है इसलिए शिव मंदिर और सिद्ध बाबा मंदिर ही जा पाए। अब
इन स्थानों की कुछ विशेषताओं पर दो बातें हो जाएँ। ये स्थान उत्तर प्रदेश में अपने जिला बुलन्दशहर की
तहसील जहाँगीराबाद के अंतर्गत आते हैं। ये सभी अहार क्षेत्र में पड़ते हैं।
पहला, अवंतिका देवी का मंदिर। दूसरा, भगवान शंकर का मंदिर और तीसरा सिद्ध बाबा का मंदिर।
इन सभी जगहों पर भक्तजनों का तांता-सा लगा रहता है। विशेषत: पूर्णिमा आदि को तो दूर-दराज
के लोग भी बड़ी संख्या में वहाँ पहुँचते हैं। आसपास के लोग तो शायद रोजाना या हर हफ्ते
भी इन स्थानों पर जाते ही होंगे। सिद्ध बाबा मंदिर क्षेत्र से करीब दो किलोमीटर की
दूरी पर गंगा का किनारा है।
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgNvMhdOkLHnSGk0CUJKsMrtHdAdbhJzpvFdhNgdDYDW-V0Vix4Mk9x7I2eVKtc1tSuxLsuSTdqG1rn_EvlEMYJU-JzzBaEp-kv_q2QLhcg57TO8dk7ECSbzgDfqLLM541BR2AMnVPeu9rY/s200/IMG_0982.JPG) |
गंगा स्नान का आनन्द ।चित्र:बलराम अग्रवाल |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjLPn5D9_XfV5SYpxbXXffhjB_bp6iOxjkJb4vEzEfw7DMglIGfUXO0JlYsU8AmO1IwJuOmQVlZDbOGqbeewH1TSxhSSqtyixC2jlS2gbbUlBXFGUUrlz7u2T-4ePIYozg9_aFNmo8vjpJf/s200/IMG_0985.JPG) |
छोटे ट्रकों में भरकर आने का चलन।चित्र:बलराम अग्रवाल |
गंगा में स्नान करना। किसी पात्र में गंगाजल लेना और सिद्ध
बाबा के मंदिर में स्थापित शिवलिंग का उस जल सेअभिषेक करना—यहाँ के लोगों में प्रचलित
आम परंपरा है। शिशुओं का मुंडन संस्कार भी गंगा
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj1L7D3SiwyX_Zr78hm8tXHymBzjKcpinf8LII3PfH4nPzrWvORsl5NrvRU_P6pTbPPlro9kSb-C5y5y78s_85nZsuKvjHjH3E-k8CcxewlhFm6WFQ6Y056RHBoUwfTpruyqFL2e_trzMPs/s200/IMG_0992.JPG) |
बच्चे का मुंडन |
किनारे कराया जाता है। जन-समुदाय के बीच व्यापक स्तर पर मान्यता प्राप्त यह तीर्थ आज भी कुछ 'आदिम' परम्पराओं का निर्वाह करता है।
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhasBN0FVEH3GMUdDVlpcjZhTiFGo31P70Us72Y4keUkM8AqsAwh4LK8T0rXDEnlwMwCAdeTDTW2mmoYsUOFYHa_brgcgdq_LS6jW4hOlImCb3hULTLNfeKcxyCC-JK1I-o0GL-J25TLlaE/s200/IMG_0988.JPG) |
स्नान के बाद अगर आप प्रकृति के बीच कपड़े नहीं बदलना चाहते तो जाइए अपने वाहन में यह कार्य पूरा करिए। गंगा-किनारे कोई सुविधा नहीं मिलेगी। चित्र : बलराम अग्रवाल |
मसलन, गंगा में स्नान से पहले किसी माँ, बहन, बेटी, बहू को शौच या लघुशंका से निवृत्त होना हो, तो खुले खेत में मर्दों के बीच की निवृत्त होना होता है। मर्दों को शर्म तो बहुत आती होगी, लेकिन मजबूरी में उन बेचारों को
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhrmTTEMshxl4X-6skOO5tXK8HbqEO_vWyYSBvNQ2HttyMcaD7vlEejRW43_LmtugSCs5LZuGQDzUnHLQuOgTKzPgPSInzWsxEMhJ4j34r1o3fFcYJnZMyh2f2gYQHXLl9DeHSVJY5_OYB4/s200/IMG_0987.JPG) |
मिट्टी का यह शिवलिंग बता रहा है कि इस जगह पर जल्द ही 'प्रख्यात' शिव मन्दिर का निर्माण हो सकता है। |
बैठे रहना पड़ता है।
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgbdJMWoy3XZfq7t7zY_-3MvzKrmm86yTjO3w9HdQeg0a4bWfzXSXw22uz5QXPF1JTrxpp-OkFtotSfzhrdGQc2u5SkHL_UXStiEu_JDwBukjxFyvTATCBDP8nz-XktWfZZPat9XxmhGp46/s200/IMG_0954.JPG) |
लोग पैदल भी तीर्थ तक पहुँचते हैं।चित्र:बलराम अग्रवाल |
ये सभी मंदिर
क्षेत्र और इनमें प्रचलित परंपराएँ सैकड़ों साल पुराने हैं। इस क्षेत्र के राजा साहब
माने जाने वाले कुंवर सुरेन्द्र पाल सिंह, मैं समझता हूँ कि आजादी के बाद से अपने स्वस्थ
रहने तक लगातार कांग्रेस के टिकट पर सांसद चुने जाते रहे और अधिकतर ‘रेलवे राज्य मंत्री’
का पद सुशोभित करते रहे। उनके बाद इस क्षेत्र से सांसद कौन हैं और विधायक कौन—यह जानने
की रुचि मुझमें नहीं है। इन सब ने उस क्षेत्र का जो विकास किया-कराया, वह सब वहाँ किसी न किसी 'उद्घाटन शिला' की शक्ल में तो नजर आता है, किसी कार्य की शक्ल में नहीं।
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhubZwJKGcAHqVKNfj29P_MKw4veRhPXsvwyZKT7xwJ92188tSLjCW_x2g_pk_arnfvX7RvGdTlugXPaDw1HdeCSet4dQjXGPgoYbTzGHI191QBHK7bhHZ9SCjyPwSHuF2G7lgdEy1rzwpZ/s200/IMG_0999.JPG) |
सिद्ध बाबा मन्दिर, मुख्य द्वार का चित्र ।चित्र:बलराम अग्रवाल |
(1) मुख्य सड़क (बुलन्दशहर-अनूपशहर
मार्ग) के बाद, समूची अहार रोड का हाल यह है कि शरीर की सारी चूलें हिली पड़ी हैं। पेन
किलर न लेता तो रात को सो पाना नामुमकिन था।
(2) लोगों में ट्रेफिक सेंस
दिल्ली की सड़कों पर नहीं मिलती है तो दूर-दराज के उस ग्रामीण क्षेत्र में क्या मिलती?
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg5ySi6px0Iee3tqrhT02kElNk9LGSGR0ALMu8BYRH2tMdXSWe7kzTGhlHMYVJjFBtVwj19rXrqwvRJu9pdYuwNPUsSlb-0JILWyNAL12u-uOOuq7gdFXbiP-OKpoHbmrLFF1rLZAtPI3fJ/s200/IMG_0952.JPG) |
अनुशासनहीन वाहन। चित्र:बलराम अग्रवाल |
(3) सड़क की चौड़ाई सिर्फ इतनी
है कि सामने से आ रही बस को रास्ता देने के लिए इधर वाली बस को पलट जाने के खतरे की
सीमा तक किनारे होना पड़ता है।
(4) सिद्ध बाबा क्षेत्र में
‘भण्डारा’ खिलाने का चलन बुरी तरह पनप चुका है। यहाँ पहुँच जाने के बाद यह तो हो सकता
है कि कोई श्रद्धालु ‘अफारे’ से मर जाए, भूखा कतई नहीं मर सकता।
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgX6eU9RyQxkK4EsxJ4qgT349nc-YjtFmT8Q-XI7GLwf7-OB8Z9iVgE9iFQ1ZMe_iVJ0ifABeotApJAFac5C5rYshMJAC-VOO47Wcx1CedetdTLBCth2EFCczJqUZQVYkDDrxIrAdWz248r/s200/IMG_0955.JPG) |
'भण्डारा' की तैयारी करता एक परिवार।चित्र:बलराम अग्रवाल |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjiauPnhvb6qttTgnFrONT8Z99_IvKUvEdFaXHNdY2LCtopsvisz6gAuuiWWgTbsHeyYsc9DS4WX3pZafOWIzBzSkFswzIV7hb2LAf-uHOxVW6537SHmhI0PpTYoLmm-Ky8O8H4pOe2IQu0/s200/IMG_0960.JPG) |
पूड़ियाँ तलता एक हलवाई । चित्र:बलराम अग्रवाल |
(5) लोग अपने क्षेत्र से ही
गैस चूल्हा, सिलैंडर, आटा, आलू, मसाले, चाकू आदि सामान लाते हैं। वहीं बैठकर रसोई बनाते
हैं और वहीं पर बाँटना शुरू कर देते हैं।
![सिद्ध बाबा गुरु गोरक्षनाथ संप्रदाय के संतों की साधना स्थली 'सिद्ध बाबा का मंदिर' का मुख्य द्वार](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj4iIV-BJa8c7exE50EY3uRIIgNGZVmHMqT5AfVytSl2QoqXwN1MTD25i0CeGTXM7oJsNzPLJ7OpKqzuDpxGO4r31kJGRen9dErpt0L6TtMbd1sT6eSTzMVVspOsS6NahneKKgANPsBMk0L/s200/IMG_0956.JPG) |
प्रसाद वितरण करता एक परिवार।चित्र:बलराम अग्रवाल |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjF-k2IMqI0SMxOgSXUyCMic80Q_eY4SsXwHVIGKoT-6QSp9aTCL6kaao8ymB1H9p3LQF8qU6tDVPUQ7RXUIWm1bqvqAqhc2O52kXVISd_FvEFJm6JflpTf_WdgVSdFNvSbJEoyj4MK6Oxn/s200/IMG_0973.JPG) |
मोटर-साइकिल की सीट पर रखकर प्रसाद पाते दो मित्र।चित्र:बलराम अग्रवाल |
(6) ‘भण्डारा’ खिलाने और खाने—दोनों
में ही किसी अनुशासन की जरूरत न तो खिलाने वाले को महसूस होती है और न खाने वाले को।
लोगों को अखबार के कागज पर, थर्मोकोल की प्लेट पर या ढाक के पत्तों से बने दोने पर
सब्जी-पूड़ी, पुलाव आदि पकड़ा दिया जाता है।
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh04bDOd696gZ8DqgK1Zayl0Nx-jN9pJsUiHkdnXNj-_8fx5BEOp0oDi93xjmQhIUEin1S06YJ6wi51sisbg41lKwIh6UD9lGGxtRdVHiX1DVtuIWBK6nVTj26ex3_kMtnSFrC6_76-64v8/s200/IMG_0975.JPG) |
जूठे दोनों-पत्तलों-कागजों के बीच बैठकर प्रसाद ग्रहण करती बहनें।चित्र:बलराम अग्रवाल |
उसे लेकर वे अपनी सुविधा के अनुसार आसपास
खड़ी किसी साइकिल के कैरियर पर, मोटर साइकिल की गद्दी पर, कार के बोनट पर रखकर खा लेते
हैं। रखने को कोई जगह न मिले तो अपनी हथेली तो है ही।
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhNF4YVcdugXkmkJWSZOk1Kfq856eHGt_Bl0yK9nhRoEM4m46jChq-TayZPFdtaUfGwZTxE1eB8IZWRlZA-CXcJ2r9noirERHsDe1OIa7ZfHTVY33guzQ2aoC404uEfotbwxaZH01xblUK6/s200/IMG_0976.JPG) |
जूठे दोनों-पत्तलों-कागजों के बीच खड़े होकर प्रसाद ग्रहण करता एक पति। चित्र:बलराम अग्रवाल |
खड़े रहकर खाने का माद्दा न हो
या खड़े होकर खाने को शुभ मानने का मन न हो तो जमीन पर बैठकर भी लोग खाते ही हैं। जूठी
पत्तलों, दोनों या अखबारी कागजों को कहीं भी फेक देने के लिए सब स्वतंत्र हैं। उनके
बीच बैठकर खाने से किसी को ‘घिन’ नहीं आती है।
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiZXN0ujop1ZibPGmiMZ-cfC2OchMwe0C4ocKtJanmgyVLZKPw90XaQKT041JvQSg63SSsC0gGqaaqnO95LHFmHR3bA-WO1q7lFjKyCdWo_k-T9d62ECEi9m9GU64IF34MZfa7TEuAVy0jh/s200/IMG_0978.JPG) |
जूठे दोनों-पत्तलों-कागजों के बीच बैठकर प्रसाद ग्रहण करती एक माँ। श्रद्धा या मजबूरी? चित्र:बलराम अग्रवाल |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiFt_5QcmKux3iNt-lsTppXFf8tFtYsiILmdaEemvvXtEiNr8bHXw8UyTJYgde4KmepvYYYVWib93fvBeH0rQ1xGQREunVXVOscfW-taSWw-_pr566Ty0CO3otFhaseM5qICPm7U4GiHEvt/s200/IMG_0981.JPG) |
जूठे दोनों-पत्तलों-कागजों के बीच बैठकर प्रसाद ग्रगण करता एक परिवार।चित्र:बलराम अग्रवाल | |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiVvfwILbDd61oSuykO6FkBJt0O1BQxlOaXcAv7Yv00ibVNm0hfhFzhu-2n3o8CtdWbjzAkdRplxMTUWgytu5hZJNg3qnG80CMRCmGdwiJbIKvlj8Aa_w70X3bKeycKYNRS9T3cTQqo__04/s400/IMG_0998.JPG) |
और
अंत में, सिद्ध बाबा का धूनी क्षेत्र । 'नई' और 'पुरानी' दुकान की तर्ज पर, खम्भे पर लिखा 'प्राचीन धूना' आभास
दिला रहा है कि चेलों और अनुयायियों सहित चल-अचल संपत्ति का लिखित/अलिखित बँटवारा हो चुका है। इसी प्रांगण में जरा हटकर एक अन्य 'धूना'
भी अपने अनुयायियों के साथ नजर आता ही है। चित्र:बलराम अग्रवाल |
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