शुक्रवार, 13 नवंबर 2009

केरल यात्रा-2



केरल के एलेप्पी(Alleppey) कहे जाने वाले नगर का पूरा नाम एलप्पुझा(Alappuzha) है—‘एलेप्पी निकनेम है, इस बात का पता मुझे मुन्नार(Munnar) पहुँचने के बाद वहाँ के एक टूर-एजेंट के ऑफिस में लगे केरल के नक्शे में उसके पूरे नाम को पढ़ने के बाद चला और उसका सही उच्चारण अलप्पुषा अथवा आलपुष्षा है, इस तथ्य को मैंने एलेप्पी नगर अथवा राज्य प्रशासन की ओर से राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे जगह-जगह पर लगाए गए नामपटों पर नगर के नाम को देवनागरी में पढ़ने के बाद जाना। अन्य अनेक ऐसे राज्यों की अपेक्षा जो हिन्दी-भाषी राज्यों के बहुत निकट स्थित हैं, केरल राज्य की विशेषता यह है कि यहाँ पर मार्ग आदि से सम्बन्धित नामपटों पर मलयालम के साथ-साथ देवनागरी व रोमन में भी देखने-पढ़ने को मिल जाते हैं। पंजाब के नामपटों पर मात्र गुरुमुखी जैसा तालिबानी चरित्र आपको यहाँ नहीं मिलेगा। मुन्नार कहे जाने वाले स्थान का भी सही उच्चारण मन्नार है, इस बात को मुन्नार इन(होटल व रेस्टोरेंट) के अपने कमरे में रखे टेलिविजन सेट पर चल रही किसी वार्ता को अचानक सुनते हुए 6 नवम्बर 09 की सुबह मैंने तब जाना जब राज्य के किसी निवासी ने स्थान के नाम का उच्चारण अपने मुख से किया। इन दोनों ही घटनाओं ने मेरी इस धारणा को और अधिक पुष्ट कर दिया कि इस देश के हर नगर, हर कस्बे और हर गाँव, हर वस्तु और व्यक्ति ही नहीं कण-कण के नाम के सही उच्चारण को प्रस्तुत करने वाली एक वृहत् कोश-श्रंखला की देवनागरी में नितान्त आवश्यकता है। अब से कुछ वर्ष पहले, जब मैं पहली बार केरल-यात्रा पर निकला था, तब विभिन्न रेलवे-स्टेशनों से गुजरते हुए कुछ ऐसे स्थानों से भी गुजरना हुआ था जिनका नाम मैंने उससे पहले कभी पढ़ रखा था। मेरे आश्चर्य की सीमा नहीं थी कि जिस स्थान को मैं पिछले चालीस-पेंतालीस सालों से त्रिचूर नाम से जानता था, उसका सही उच्चारण त्रिश्शूर है! कोचीन वास्तव में कोच्चि है और त्रिचनापल्ली का सही उच्चारण त्रिश्नापल्लि है। नामों के उच्चारण में भिन्नता का अब तक मेरी समझ में एक और सिर्फ एक ही जो कारण मेरी नजर आता है, वह है उनका रोमन में लिखा जाना। रोमन में देवनागरी के कई वर्ण जैसे किण, ड़, ढ़, ष, आदि या तो पूरी तरह से गायब हैं या फिर कुछेक सहायक चिह्नों की सहायता से बनाए जाते हैं अथवा कॉमन सेंस के आधार पर पढ़ लिए जाते हैं। देवनागरी के द, ड के लिए रोमन में डी, त, ट के लिए रोमन में टी का प्रयोग होता है। दक्षिण भारत के कर्नाटक राज्य में के लिए टीएच दो अक्षरों का प्रयोग करते हैं जबकि तमिलनाडु में के लिए डीएच का प्रयोग देखने को मिलता है। दक्षिण भारत में ह्रस्व को दीर्घ बनाकर लिखने का तथा शब्द के अन्त में स्वर(Vowel) लगाकर उच्चरित करने का चलन है, यथाआदित्य को रोमन में उत्तर भारतीय क्षेत्रों की तरह ‘Aditya’ की बजाय ‘Adithya’ तथा सीता को ‘Sita’ की बजाय ‘Sitha’ लिखने का तथा आदित्य को आदित्या बोलने का चलन है। नामवाचक शब्दों के हिज्जे अर्थात स्पेलिंग्स अलग-अलग स्थानों पर स्थानीय उच्चारण के अनुरूप अलग-अलग देखने को मिलते हैं तथापि ब्रिटिश उपनिवेश रहे इस देश के राज्यों के, नगरों के, गाँवों के व व्यक्तिगत नामों तक के हिज्जे(स्पेलिंग्स) अंग्रेजों ने जो तय कर दिये थे, अधिकांशत: अभी भी वही के वही चले आ रहे हैं। उनके उच्चारण कुछ-और हैं और हिज्जे कुछ-और। उत्तर भारत के दिल्ली(Delhi), लखनऊ(Lucknow), मेरठ(Meerut) आदि कितने ही नगर ऐसे हैं।



बेटी-दामा भी चलेंगे तो पूरा परिवार ही एक साथ हो जाएगा न। मीरा ने कहा—‘ऐसा मौका बार-बार कहाँ आता है।
ओजस ठंड पकड़ गया तो बहुत मुसीबत हो जाएगी। मैंने दबाव डाला—‘बचपन की बीमारियाँ बड़ी उम्र तक दु:ख देती हैं।
तुम टाँग मत अड़ाओ और चुप रहो। वह बोली। मैं चुप हो गया। वास्तविकता तो यह थी कि यात्रा के आनन्द को वह बेटी-दामाद और दौहित्र के साथ भोगना चाहती थी और इस उल्लास में बच्चे के स्वास्थ्य-सम्बन्धी सुरक्षा की ओर अतिरिक्त विश्वास से भर उठी थी। वस्तुत: ऐसा होना नहीं चाहिए। सुरक्षा-सम्बन्धी मामलों में हमारे पैर हमेशा जमीन पर ही रहने चाहिएँ।
नोट:इस पोस्ट में संलग्न सभी फोटो मेरे कनिष्ठ पुत्र आदित्य अग्रवाल द्वारा खींचे गए हैं। इस बार के दो फोटो मुन्नार-क्षेत्र के आसपास चाय-बाग़ानों के तथा एक ओजस का है।



2 टिप्‍पणियां:

सुभाष नीरव ने कहा…

भाई बलराम, तुम्हारा यह नया ब्लॉग "अपना दौर" बहुत भाया। केरल की यात्रा तो थोड़ी बहुत मैंने भी की है, पर तुम्हारा यह यात्रा संस्मरण वाकई अच्छा है, कई नई जानकारिया मिलीं, इसे जारी रखो। तुम वैसे भी हो घुमक्कड़ प्रवृत्ति के, तुम्हारे पास तो ऐसे संस्मरणों का खजाना है, उन्हें शेयर करो। बधाई !

भारतेंदु मिश्र ने कहा…

भाई,
अच्छी जानकारी के लिए धन्यवाद,केरल की प्रकृति मनोरम है,वहाँ के लोग भी प्रगतिशील है। अब कहाँ है आप?
भारतेन्दु मिश्र